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कुबेरेश्वर धाम में छह जुलाई से आरंभ होगी शिव महापुराण, होगा भव्य आयोजन

- बाहर से आए कलाकारों के द्वारा किया जा रहा है 1000 फीट लंबा पांडाल तैयार, आयोध्य के श्रीराम मंदिर के तर्ज पर बनाया जाएगा मंच

सीहोर। जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में 6 जुलाई से भव्य शिव महापुराण का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए तैयारियां भी जोरोें सेे चल रही है। कुबेरेश्वर धाम को पूरी तरह टेंट सिटी के रूप में तब्दील किया जा रहा है। यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। मंदिर के विशाल परिसर में करीब 15 एकड़ से अधिक क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक पांडाल बनाए जा रहे हैं। मुख्य पंडाल सागर से आए कलाकारों द्वारा आयोध्य के श्रीराम मंदिर की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है। जिले के इतिहास में पहली बार होने वाले भव्य आयोजन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा के सानिध्य में किया जाएगा। इसमें हरदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे। इस संबंध में जानकारी देते हुए विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि सभी की सुख-समृद्धि की कामना और धर्म को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आगामी छह जुलाई से होने वाले महाकुंभ की तैयारियां समिति के द्वारा की जा रही है। मंदिर परिसर और आस-पास के क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने, भोजन भंडारे और कथा का श्रवण करने के लिए व्यवस्था की जा रही है। इस महाकुंभ का शुभारंभ आगामी छह जुलाई से किया जाएगा। इसके पश्चात आगामी 13 जुलाई को भव्य दीक्षा समारोह का आयोजन किया जाएगा। इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं को गुरु दीक्षा प्रदान की जाएगी।
रात-दिन चल रहा है काम-
सागर से आए पांडाल निर्माता शरद सोनी ने बताया कि यहां पर समिति के कार्यकर्ताओं के साथ हमारे कारीगर दिन-रात यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने, भोजन और कथा श्रवण करने की उचित व्यवस्था करने में लगे हुए हैं। यहां पर मुख्य पांडाल करीब 1000 फीट लंबा, 84 फीट चौड़ा और करीब 70 फीट ऊंचा बनाया जा रहा है। मंच का बैकग्राउंड आयोध्य में निर्माणाधीन भगवान श्रीराम के मंदिर की तर्ज पर सजाया जा रहा है।
गुरु दीक्षा के साथ बताया शिव महापुराण का महत्व-
यहां पर व्यवस्था का निरीक्षण करने के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि हमारे जीवन में गुरु का काफी महत्व है। दीक्षा से अपूर्णता का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है। गुरु का ईश्वर से साक्षात संबंध होता है। ऐसा गुरु जब अपनी आध्यात्मिक-प्राणिक ऊर्जा का कुछ अंश एक समर्पित शिष्य को हस्तांतरित करता है तो यह प्रक्रिया गुरु दीक्षा कहलाती है। यह आध्यात्मिक यात्रा की सबसे प्रारंभिक सीढ़ी है। उन्होंने कहा कि भिन्न धर्मों में दीक्षा लेने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। फिर भी अनेक लोग नहीं जानते कि आखिर दीक्षा में होता क्या है? दीक्षा है क्या? साधारण भाषा में कहें तो किसी गुरु की देख-रेख में एक साधना पद्धति को अपनाने का संकल्प दीक्षा है। गुरु अपने शिष्य को साधना के गहन सूत्र बताकर उसके मस्तिष्क और संपूर्ण तंत्रिका तंत्र को अध्यात्म प्रवाह के लिए खोल देता है, लेकिन गुरु और अध्यापक में अंतर है। आजकल किसी को भी गुरु कहना फैशन बन गया है।
नहीं किया जाएगा रूद्राक्ष वितरण-
जानकारी के अनुसार आगामी छह जुलाई से जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर होने वाली शिव महापुराण और दीक्षा समारोह के दौरान रुद्राक्ष वितरण नहीं किया जाएगा। यहां पर आने वाले वाहनों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था की जा रही है।

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