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श्राद्ध पक्ष: बगैर ब्राह्मण ऐसे करें पितरों का तर्पण…

श्राद्ध पक्ष:  सीहोर। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों का तर्पण करना एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है। कई बार पंडित जी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, ऐसे में आप स्वयं भी कुछ सरल विधियों का पालन कर तर्पण कर सकते हैं। यह विधि आपको घर बैठे ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करेगी।
सरल विधि
शुद्धिकरण: सबसे पहले आसन पर बैठें। बाएं हाथ में जल लेकर तीन बार ‘पुण्डरीकाक्ष: पुनातु’ बोलकर अपने ऊपर जल छिडक़ें। फिर केशवाय नम:, ‘माधवाय नम:’ और ‘नारायणाय नम:’ बोलकर तीन बार आचमन करें। इसके बाद ‘गोविन्दाय नम:’ बोलकर हाथ धो लें।
संकल्प: हाथ में जल, सुपारी, सिक्का और फूल लेकर अपना नाम और गोत्र बोलकर संकल्प लें, विष्णु: विष्णु: विष्णु: रितिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थम् अद्य नाम: गोत्र: उत्पन्न: अहम देव ऋषि पितृ तर्पण, करिष्ये।
देवताओं और ऋषियों का तर्पण: एक थाली में जल, कच्चा दूध और गुलाब की पंखुडिय़ां डालें। पूर्व दिशा में मुख करके, जनेऊ को सीधा रखते हुए, दाएं हाथ की उंगलियों से देवताओं को तीन बार जल दें: सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम: तर्पयामि
इसके बाद उत्तर दिशा में मुख करके, जनेऊ को गले में माला की तरह पहनकर, दोनों हथेलियों के बीच से ऋषियों को तीन बार जल दें: ‘सर्वेभ्यो ऋषिभ्यो नम: तर्पयामि’
पितरों का तर्पण: दक्षिण दिशा में मुख करके, जनेऊ को दाएं कंधे पर रखें और थाली में काले तिल डालें। हाथ में तिल लेकर पितरों का आह्वान करें ‘आगच्छन्तु मे पितरा: स्वीण्कुर्वन्तु जलान्जलिम्’
अब अंगूठे और तर्जनी के बीच से पितरों को जल दें। अपने गोत्र का उच्चारण करते हुए तीन पीढिय़ों तक के पितरों का नाम लेकर तर्पण करें। जैसे
पिता के लिए: अपने गोत्र और पिता का नाम लेकर तीन बार … गोत्र: मम पितु: … तृप्यताम्श् बोलें।
माता, दादा, दादी, नाना, नानी, भाई.बहन आदि के लिए भी इसी तरह उनके गोत्र और नाम के साथ तर्पण करें।
अधम गति पितरों के लिए: एक रुमाल को जल में भिगोकर निचोड़ दें, ताकि अधम गति वाले पितरों का भी तर्पण हो सके। अगर किसी पितर का नाम याद न हो तो नाम की जगह ‘विष्णुस्वरूप स्वरूप’ बोल सकते हैं।
समापन: अंत में भगवान सूर्य को अघ्र्य दें। हाथ में जल लेकर तीन बार ‘विष्णवे नम:’ बोलकर जल छोड़ दें और आसन के नीचे जल डालकर माथे पर तिलक लगाएं।
अगर यह विधि भी संभव न हो तो
जो लोग इस विस्तृत विधि को नहीं कर सकते, वे प्रतिदिन स्नान के बाद पूर्व दिशा में भगवान सूर्य को अघ्र्य दें। इसके बाद दक्षिण दिशा में हाथ ऊपर करके श्रद्धापूर्वक पितरों का स्मरण करें। इसके बाद गौमाता को रोटी या चारा डालें। शास्त्रों के अनुसार यह सरल क्रिया भी पितरों को संतुष्ट करती है।
यह विधि: सर्व ब्राह्मण युवा परिषद, इंदौर द्वारा बताई गई है।

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