श्री राम-कथा जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हुए भगवत प्राप्ति की राह दिखाती है: महंत उद्वावदास महाराज

सीहोर। श्री राम-कथा जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हुए भगवत्प्राप्ति की राह दिखाती, भगवान राम के जीवन से हमें सद्भाव पर चलने की प्रेरणा मिलती है। हर समय अपने गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी को एक दूसरे पर विश्वास करना चाहिए। तब ही हमारा जीवन सुखी होगा। उक्त विचार शहर के शुगर फैक्ट्री स्थित सीहोर चित्रांश समाज के तत्वाधान में जारी नौ दिवसीय श्रीराम कथा के दूसरे दिन महंत श्री उद्वावदास महाराज ने कहे। उन्होंने देर रात्रि को आयोजित कथा में भगवान शिव और माता सती का संवाद का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि जब पंचवटी से देवी सीता का हरण रावण ने कर लिया था। श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे। बहुत कोशिशों के बाद भी सीता की खबर न मिलने से श्रीराम बहुत दुखी थे। जब श्रीराम की ये लीला चल रही थी, उस समय शिव जी और देवी सती ने श्रीराम को देखा। शिव जी ने दूर से ही श्रीराम को प्रणाम कर लिया, लेकिन माता सती के मन में शंका थी। श्रीराम दुखी थे, ये देखकर सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि यही शिव जी के आराध्य राम हैं। देवी सती ने अपने मन की बात शिव जी को बताई तो शिव जी ने कहा, ये सब राम जी की लीला है, आप शक न करें। उन्हें प्रणाम करें। शिव जी के समझाने के बाद भी देवी सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि राम ही भगवान हैं। शिव जी समझाया, लेकिन देवी सती राम जी की परीक्षा लेने वन में चली गईं। देवी सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं। देवी को देखते ही श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि देवी आप यहां अकेले कैसे आई हैं, शिव जी कहां हैं? श्रीराम की ये बातें सुनते ही देवी सती को अपनी गलती का एहसास हो गया और वे चुपचाप शिव जी के पास लौट आईं। शिव जी ने सती से पूछा कि क्या आप ने राम जी परीक्षा ले ली, देवी सती को पछतावा हो रहा था, डर की वजह से उन्होंने शिव जी से झूठ बोल दिया कि मैंने राम जी परीक्षा नहीं ली और मैं तो दूर से ही प्रणाम करके वापस आ गई हूं। शिव जी देवी सती को जानते थे वे किसी भी बात पर आसानी से भरोसा नहीं करती हैं। उन्होंने ध्यान किया तो उन्होंने मालूम हो गया कि सती ने श्रीराम की परीक्षा ली है और फिर झूठ भी बोल रही हैं।