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बीच बाजार ‘जैन तीर्थ’ बना प्राचीन श्री ओसवाल जैन मंदिर, 30 नवंबर को होगी भव्य प्राण-प्रतिष्ठा

सीहोर। नगर के धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व में एक नया अध्याय जुड़ गया है। शहर के बीचों-बीच चरखा लाईन छावनी में स्थित प्राचीन श्री ओसवाल जैन मंदिर का भव्य पुन:निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। पूरा मंदिर सफेद मार्बल के पत्थरों से तराशा गया है, जिसके कारण यह मंदिर अब शहर का एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बन गया है।
श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा अब इस मंदिर में भगवान श्री मनमोहन पाश्र्वनाथ की पुन:प्रतिष्ठा की जोरदार तैयारियां चल रही हैं। यह आयोजन इसी महीने 28 से 30 नवंबर के बीच होने जा रहा है। वर्तमान में भगवान की मूर्तियों को कस्बा स्थित एक भवन में रखा गया है।
पुरानी पहचान, नई भव्यता
प्राचीन श्री ओसवाल जैन मंदिर छावनी में मनमोहन पाश्र्वनाथ भगवान की अत्यंत मनोरम और चमत्कारिक मूर्ति विगत कई वर्षों से विराजित थी। मंदिर के निर्माण के लिए वर्षों पूर्व भामाशाह दानदाता सरदारमल जैन ने जमीन का दान किया था। जैन धर्म में यह मान्यता है कि जो मंदिर 100 वर्षों से अधिक पुराना हो जाता है, वह तीर्थ बन जाता है। यही कारण है कि छावनी ओसवाल जैन मंदिर को अब तीर्थ के रूप में मान्यता रहेगीए जहां देशभर से जैन धर्मावलम्बी दर्शन करने आएंगे।
गुरु कृपा से पूर्ण हुआ संकल्प
कई सदियों बाद जैन धर्म के प्रभावी संत आचार्य श्री नवरत्न सागर सूरीश्वर जी मण्साण् ने करीब 12 साल पहले इस मंदिर के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया था। अब उन्हीं के कृपापात्र आचार्य श्री विश्वरत्न सागर सूरीश्वर जी म.सा. के अथक प्रयासों से आखिरकार श्री ओसवाल जैन मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हुआ है। मंदिर निर्माण में भारी धनराशि खर्च की गई है।
मंदिर निर्माण की मुख्य विशेषताएं
सफेद मार्बल: पूरा मंदिर सफेद मार्बल के पत्थरों से बनाया गया है, जिसने इसे भव्यता प्रदान की है।
मजबूत नींव: जमीन में 10 फीट गहराई तक से जमीन की शुद्धता कराकर आधारशिला रखी गई है।
नक्काशीदार निर्माण: मंदिर का गर्भगृह और पूरा ढांचा बाहर से आए राजस्थानी कारीगरों द्वारा नक्काशीदार मार्बल पत्थरों से खड़ा किया गया है।
विराजमान होंगी पांच प्रतिमाएं: मंदिर के अंदर जैन समाज के तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ जी की 5 विभिन्न स्वरूपों में प्रतिमाओं की स्थापना होना है।
अन्य देवता: इनके साथ ही माता पद्मावती देवी, नाकोड़ा भैरव और सिंदूरधारी प्राचीन श्री मणिभद्र यक्षराज भी यहां विराजमान होंगे।

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