
सीहोर। श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर अरिहंतपुरम आष्टा में चातुर्मास हेतु विराजमान रहे मुनिश्री प्रवर सागर महाराज ने चातुर्मास की सफलतापूर्वक समाप्ति के उपरांत अरिहंतपुरम से मैना की ओर मंगल विहार किया। मुनिश्री के विहार के अवसर पर समस्त मुनि सेवा समिति के सदस्यों सहित बड़ी संख्या में समाजजनों ने गुरुदेव के चरणों में नमोस्तु निवेदित किया और क्षमा याचना की।
चातुर्मास की समाप्ति पर अपने प्रेरक प्रवचन में मुनिश्री ने जीवन की नश्वरता और संयम के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा भैया, जहां असंयम है वहां असुरक्षा है और जहां संयम है वहां सुरक्षा है। मुनिश्री ने कहा कि सच्चा सुख इंद्रियों में नहीं, बल्कि इंद्रिय विजय में है। उन्होंने तपस्या और त्याग को जीवन का आभूषण बताते हुए कहा कि इन्हीं के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।
धर्ममय रहा चातुर्मास काल
समिति के सदस्यों ने गुरुदेव के चरणों में भाव प्रकट करते हुए कहा कि मुनिश्री की सन्निधि में धार्मिक क्रियाएं करते हुए जो समय व्यतीत हुआ, वह सदैव स्मरणीय रहेगा। चातुर्मास के इस काल में समाज में वातावरण धर्ममय बना रहा। इस दौरान 24 तीर्थंकर विधान पश्चात सिद्धचक्र महामंडल विधान सहित कई धर्ममय कार्यक्रम आयोजित हुए, जिनमें समाज के हर वर्ग ने बढ़ चढक़र हिस्सा लिया और पुण्य अर्जित किया। मुनिश्री का रात्रि विश्राम पटरिया में हुआ। इस अवसर पर उपस्थित सभी सामाजिक बंधुओं ने समाज की एकता और वात्सल्य बने रहने का निवेदन किया।