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उठो देव, जागो देव! 1 नवंबर से बजेगी शहनाई

सीहोर। सूर्य उपासना के महापर्व छठ के तुरंत बाद अब वह शुभ घड़ी आ रही है, जिसका इंतजार पिछले चार महीने से था। देवशयनी एकादशी से पाताल लोक में विश्राम करने गए भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन जागेंगे। यह पर्व इस साल 1 नवंबर को मनाया जाएगा।
बालाजी ज्योतिष अनुसंधान एवं परामर्श केंद्र के स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ गणेश शर्मा ने बताया कि देवउठनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास की अवधि समाप्त हो जाएगी। इसके बाद से ही सभी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे शादी, सगाई, मुंडन और गृहप्रवेश आदि विधिवत शुरू हो जाएंगे। इसे देवोत्थान एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं, जो नए और शुभ समय की शुरुआत का प्रतीक है।
तिथि और तुलसी विवाह
तिथि: हिंदू पंचांग के अनुसार 1 नवंबर को सुबह 09 बजकर 11 मिनट से एकादशी तिथि शुरू होगी, जो पूरे दिन रहेगी। इसलिए देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को ही मनाई जाएगी।
महत्व: इस दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा का बड़ा महत्व है। व्रत पूर्ण करने के बाद इसका पारण अगले दिन 2 नवंबर को किया जाएगा।
तुलसी विवाह: ज्योतिषाचार्य पंडित शर्मा के अनुसार देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी 2 नवंबर को द्वादशी तिथि पर भगवान शालिग्राम और देवी तुलसी का विवाह संपन्न होगा, जिसे तुलसी विवाह कहा जाता है।
ऐसे करें भगवान विष्णु को प्रसन्न
पंडित सौरभ गणेश शर्मा ने पूजा विधि बताते हुए कहा कि व्रती एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल पर चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं। पीला चंदन, अक्षत, फलए मिठाई, तुलसी दल और पंचामृत का भोग लगाएं। धूप दीप जलाकर एकादशी व्रत की कथा सुनें, मंत्रों का जाप करें और आखिर में श्रीहरि विष्णु व माता लक्ष्मी की आरती करें।

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