राजनीतिक

सीएम फेस घोषित हुए चन्नी, पर ये समुदाय काट सकते हैं कांग्रेस से कन्नी

 चंडीगढ़

पंजाब में कांग्रेस की ओर से चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम उम्मीदवार घोषित किए जाने को बड़ा दांव माना जा रहा है। यही नहीं इसे पंजाब में मंडल पॉलिटिक्स की शुरुआत भी कहा जा रहा है। चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित सीएम हैं और यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो 5 साल के लिए उन्हें मौका मिलना बड़ी बात होगी। पंजाब में दलित समुदाय की आबादी 32 फीसदी आबादी है, जो चुनाव का रुख बदलने में अहम है। अब तक इस समुदाय को सत्ता में इतनी बड़ी भागीदारी पंजाब में कभी नहीं मिली, जबकि कांशीराम खुद इसी सूबे से आते थे। 1980 के दशक में बीएसपी के गठन के बाद भी पंजाब में हमेशा दलित नेताओं को कैबिनेट में तो जगह मिली, लेकिन अहम मंत्रालय और सीएम पद जैसी चीजें नहीं मिल सकीं।

सूबे की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 34 आरक्षित हैं। यदि कांग्रेस इन सीटों पर भी चन्नी के दांव से जीत जाती है तो यह उसके लिए बड़ी सफलता होगी। हालांकि राजनीतिक जानकारों का एक वर्ग मानता है कि कांग्रेस के लिए अब भी राह आसान नहीं है। पंजाब को समझने वाले लोग मानते हैं कि कांग्रेस का यह फैसला उसके लिए बैकफायर भी साबित हो सकता है। यदि वह बार-बार दलित सीएम की बात कर लोगों के बीच जाती है तो फिर 38.5 फीसदी अन्य हिंदू और 21 फीसदी जाट सिखों का ध्रुवीकरण दूसरी तरफ हो सकता है। इसकी वजह यह है कि आम आदमी पार्टी ने जाट सिख भगवंत मान को ही अपना सीएम कैंडिडेट बनाया है। वहीं सुनील जाखड़ को अहम जिम्मा न मिलने से हिंदू समुदाय के भी एक वर्ग के खिसकने की आशंका है।
 

फिर भी कांग्रेस की ओर से चन्नी को सीएम घोषित करने का साहसी फैसला लिया गया है। एक तरफ जाट सिख सिद्धू को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर फ्रंटफुट पर रखा है तो वहीं चन्नी के जरिए दलित वर्ग को साधने का प्रयास किया है। बड़ी बात यह है कि चन्नी वाले दांव को कांग्रेस सिर्फ पंजाब तक ही सीमित नहीं रखना चाहती बल्कि दूसरे राज्यों में भी प्रचारित करना चाहती है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास ऐतिहासिक तौर पर दलितों का समर्थन रहा है, लेकिन उस पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि उसने इस बिरादरी के वोट तो लिए लेकिन उन्हें सत्ता में भागीदारी नहीं दी थी। अब चन्नी को सीएम उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस इस आरोप से मुक्त होना चाहेगी।

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