क्या उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा न देकर और बिगाड़े हाल?
मुंबई
महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट को एक सप्ताह से ज्यादा समय गुजर चुका है। इस दौरान खबर आई थी कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा देने की योजना बना चुके थे, लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के चलते उन्होंने ऐसा नहीं किया। हालांकि, उनके इस फैसले पर नेताओं की राय बटी हुई है। कुछ का मानना है कि ठाकरे ने बने रहकर हालात को और बिगाड़ दिया। खास बात है कि शिवसेना नेता सरकार में राकंपा की भूमिका पर भी सवाल उठाते रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 20 जून को बगावत की खबर मिलने के बाद उद्धव ने आपने आधिकारिक आवास वर्षा में देर रात बैठक बुलाई। साथ ही अगले दिन भी मीटिंग बुलाई गई, जहां सभी चुने गए सदस्यों को मौजूद रहने के लिए कहा गया। अब यहां कम उपस्थिति रहने के चलते कथित तौर पर उद्धव को लगने लगा था कि हालात नियंत्रण के बाहर जा चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, उद्धव ने इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन पवार ने उन्हें सामना करने के लिए कहा था।
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि इसी के चलते उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपना सामान वर्षा से हटाया और अपने बेटों आदित्य और तेजस, पत्नि रश्मि के साथ मातोश्री पहुंच गए। एक अंदरूनी व्यक्ति का कहना है कि योजना एक अच्छी विदाई की थी। उन्होंने कहा, 'उद्धव संबोधन (फेसबुक पर) के बाद अपने छोड़ने के फैसले का ऐलान करना चाहते थे।' नेता ने बताया, 'पवार ने उन्हें रुकने औऱ जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं लेने के लिए कहा। यह भी दिखाया गया कि महाविकास अघाड़ी भाजपा के खिलाफ जंग में मिलकर लड़ेगी।' रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने बताया कि इसके बाद भी सीएम ठाकरे ने इसके बाद भी इस्तीफे की इच्छा जताई थी।
एक वर्ग का मानना है कि शायद उद्धव ने पद पर बने रहकर गलत किया। इससे यह भी नजर आया कि राकंपा अगुवाई कर रही है। खास बात है कि बागी विधायकों के आरोपों की सूची में यह भी शामिल है कि एमवीए गठबंधन में एनसीपी अपनी शर्तें चलाती है। ऐसे में इस घटना ने कई लोगों के लिए इस बात को साबित कर दिया।
क्या दे देना चाहिए था इस्तीफा?
रिपोर्ट के मुताबिक, उद्धव के एक वफादार का कहना है, 'व्यक्तिगत तौर पर कहूं, तो जैसी उन्होंने योजना बनाई थी, उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए था। इससे न केवल अच्छी विदाई होती, बल्कि लोगों की तरफ से बेहतर प्रतिक्रिया भी मिलती।' उन्होंने कहा कि इसके बजाए उद्धव अलग ही विवाद में फंस गए। उन्होंने कहा, 'ऐसा लग रहा है कि चुने गए सदस्यों का भरोसा हारने के बाद भी वह सत्ता हासिल करने के लिए जुटे हुए हैं… एक इस्तीफा बेटे और मंत्री आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में लंबी जंग के लिए पार्टी का मनोबल बढ़ाता।' एक अन्य शीर्ष नेता ने कहा कि 48 घंटों के भीतर इस्तीफा बागी शिंदे सेना के साथ-साथ बागियों का समर्थन कर रही भारतीय जनता पार्टी का भी पर्दाफाश कर देता।
बर्ताव ने भी बिगाड़ी बात
कांग्रेस का मानना है कि यह पूरा तनाव ठाकरे का तैयार किया हुआ है। वह बढ़ती बगावत और उसे संभालने में असफल रहे। पार्टी के एक नेता ने कहा, 'बजाए इसके कि बचे हुए विधायकों को रोकने के उपाय करने के उद्धव की तरफ से पहली प्रतिक्रिया थी कि जो जाना चाहता है, उसे जाने दो, उन्होंने आक्रामक बात की और कई नाराज हो गए।' सेना के कुछ वरिष्ठ सदस्य भी सांसद संजय राउत के लहजे से खुश नहीं थे। पार्टी के एक नेता ने कहा, 'सत्ता आती और जाती है। इससे लड़ो, जान की धमकी मत दो।'