किस सीट से किस्मत आजमाएंगे पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत?
देहरादून
भाजपा से बर्खास्तगी के बाद अब पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का चुनाव लड़ने का क्या प्लान हो सकता है, इस पर राजनीतिक गलियारों में बहस शुरू हो गई है। कांग्रेस अगर हरक को पार्टी में शामिल करती है तो फिर वे डोईवाला या फिर यमकेश्वर विधानसभा सीट से किस्मत आजमा सकते हैं। भाजपा में रहते हरक पहले ही साफ कर चुके थे कि वे अपनी मौजूदा विधानसभा सीट कोटद्वार से चुनाव नहीं लड़ेंगे। पार्टी ने उनके लिए केदारनाथ सीट से चुनाव लड़ाने का मन भी बना लिया था। इस बीच हरक के लगातार अपनी बहू को लैंसडौन से टिकट के लिए दबाव डालने पर भाजपा ने उन्हें पार्टी से ही बर्खास्त कर दिया। सोशल मीडिया में हरक के जिस तरह से बयान चल रहे हैं, उससे लगता है कि वे भी इस फैसले अचंभित हैं।बहरहाल, अब हरक के लिए राजनीतिक परिस्थितियां बदल गई हैं।
अगर कांग्रेस उन्हें पार्टी में शामिल करती है तो वे डोईवाला या फिर यमकेश्वर सीट पर टिकट मांग सकते हैं। हरक पहले से भी इन सीटों पर नजर गढ़ाए हैं। यमकेश्वर सीट लगातार चार बार से भाजपा का कब्जा है, जबकि डोईवाला सीट में भाजपा चुनाव चारों विधान सभा चुनाव जीती है, लेकिन वर्ष 2014 में निशंक के सांसद बनने के बाद हुए उप चुनाव में एक बार कांग्रेस के पास भी यह सीट रही है। इस बीच यदि हरक की कांग्रेस से मनमाफिक बात नहीं हो पाती तो फिर वे कोई और विकल्प भी तलाश सकते हैं। हरक सिंह रावत अक्सर सीट बदलने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। जहां वे एक बार लड़ते हुए, दोबारा उस सीट पर एंटी इंबेसी न हो, इस वजह से वे अपने लिए मुफीद सीट तलाश रहे हैं। विधानसभा के अब तक चार चुनाव में सिर्फ एक मौका ऐसा आया। जब हरक ने लैंसडौन से दो बार लगातार चुनाव लड़ा। वर्ष 2002 और 2007 में वे इस सीट से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। वर्ष 2012 में रुद्रप्रयाग तो वर्ष 2017 में कोटद्वार विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और दोनों जगह से जीतने में सफल भी रहे। अब हरक की अगली सीट को लेकर चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं।
त्रिवेंद्र रावत से 36 का आंकड़ा
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और हरक सिंह रावत के बीच अब छत्तीस का आंकड़ा हो चुका है। त्रिवेंद्र की मूल सीट डोईवाला है और जैसे की चर्चाएं चल रही हैं कि हरक कांग्रेस के टिकट पर डोईवाला से चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में दोनों के बीच रोचक मुकाबला होने की उम्मीद है। दरअसल, त्रिवेंद्र के मुख्यमंत्री रहते हरक मनमाफिक ढंग से अपने काम नहीं करा पाए। त्रिवेंद्र की लगाम के चलते उनके रिश्तों में धीरे-धीरे कड़वाहट पैदा हो गई। कर्मकार बोर्ड विवाद के बाद तो दोनों में 36 का आंकड़ा हो गया। भाजपा में रहते दोनों में एक-दूसरे के खिलाफ जुबानी जंग भी चलती रहीं।
डोईवाला में है मजबूत विकल्प की तलाश
त्रिवेंद्र रावत के मुकाबले डोईवाला में कांग्रेस के पास फिलहाल मजबूत विकल्प नहीं है। दरअसल, पूर्व कैबिनेट मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट पार्टी हाईकमान से डोईवाला के बजाय रायपुर सीट मांग रहे हैं। ऐसे में डोईवाला में कांग्रेस के पास मजबूत विकल्प तलाशा जा रहा है। यदि कांग्रेस हरक को यहां से टिकट देती है तो फिर त्रिवेंद्र और हरक में रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।