द्रौपदी मुर्मू का साथ देगी JMM, 2 महीने में 2 झटके लगे फिर भी कांग्रेस क्यों चुपचाप सहने को मजबूर
रांची
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने एक बार फिर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस समर्थित यूपीए के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा से किनारा करते हुए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का फैसला ले लिया। बता दें कि राज्यसभा चुनाव में भी झामुमो ने अपना उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस को बैकफुट पर खड़ा कर दिया था।
झामुमो के साथ कांग्रेस भले ही सरकार में है, लेकिन गठबंधन में दरार न पड़े, इसलिए किसी भी ऐसे फैसले का खुलकर विरोध करने की स्थिति में नहीं है। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी उम्मीद पाल रखी थी कि इस बार उनके उम्मीदवार को झामुमो समर्थन देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के नेताओं और विधायकों ने शुरू में पार्टी प्रभारी अविनाश पांडेय के सामने गरम तेवर दिखाए। हालांकि बाद में प्रभारी ने ही मीडिया के सामने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस के कोई विधायक या नेता नाराज नहीं हैं। उसी दिन सरकार के लिए समन्वय समिति का गठन कर झामुमो ने कांग्रेस नेताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश की।
उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही सुगबुगाहट होने लगी थी
राष्ट्रपति चुनाव में झामुमो ने यूपीए के किसी दिशा-निर्देश या गठबंधन धर्म को मानने से साफ इनकार कर दिया। झामुमो के सामने भावी राजनीति खड़ी है। संताल आदिवासी महिला उम्मीदवार छोड़कर झामुमो किसी गैर आदिवासी पुरुष उम्मीदवार को वोट देकर अपनी फजीहत नहीं करा सकता है। झामुमो के अंदर ही इसे लेकर एनडीए के उम्मीदवार की घोषणा के दिन से ही सुगबुगाहट शुरू को गयी थी। झामुमो का बड़ा धड़ा द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करने का मन बना चुका था। द्रौपदी मुर्मू जब स्वयं चलकर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के पास समर्थन मांगने पहुंच गयीं और वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनकी अगवानी की, उसी दिन राजनीतिक महकमे में यह संकेत मिल चुका था कि झामुमो चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करेगा।
कांग्रेस के पास क्या विकल्प
अब कांग्रेस के पास सीमित विकल्प है। वह झामुमो के फैसले पर मौन धारण कर उसे स्वीकार कर ले। कांग्रेस नेताओं ने पहले ही सफाई वाला बयान देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी कि उसका गठबंधन सरकार चलाने के लिए हुआ है। राष्ट्रपति चुनाव में किसे वोट करना है, यह झामुमो को अपनी पसंद और फैसला हो सकता है। कांग्रेस इस मामले में कोई बड़ा या कड़ा फैसला लेने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है कि इस मुद्दे पर समर्थन वापस ले ले। भविष्य में भी कांग्रेस उसे यूपीए सदस्य मानकर साथ चलती रहेगी।
झामुमो के फैसले का माले ने किया विरोध
भाकपा माले राज्य कमिटी सचिव मनोज भगत ने झामुमो द्वारा राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय आदिवासी आंदोलन और झारखंड के हितों की अनदेखी है। मनोज ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू के राज्यपाल रहते भाजपा ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट बदलने की साजिश से लेकर पत्थगड़ी आंदोलन तक को कुचलने में उनका इस्तेमाल किया। आदिवासियों पर राजद्रोह का मुकदमा थोपा गया। हेमंत सरकार भाजपा की चाल में फंस रही है। भाकपा माले इसका विरोध करती है।
कब क्या हुआ
21 जून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजदूगी में भाजपा मुख्यालय में हुई पार्टी संसदीय दल की बैठक के बाद द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार घोषित किया गया।
24 जून: द्रौपदी मुर्मू ने संसद भवन में राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल के दफ्तर में अपना नामांकन दाखिल किया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल हुए।
27 जून: विपक्षी दल के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने अपना नामांकन दाखिल किया। इस दौरान झामुमो मौजूद नहीं रहा। इसी दिन सीएम हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से दिल्ली में मुलाकात की।
01 जुलाई: द्रौपदी मुर्मू ने देवभूमि हिमाचल से अपना चुनाव अभियान शुरू किया। इस दौरान उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की।
04 जुलाई: द्रौपदी मुर्मू झारखंड पहुंची और झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित अन्य नेताओं से मुलाकात कर समर्थन मांगा।