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आइये जानते हैं कौन हैं एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़

जयपुर

राजस्थान की सियासत का एक वक्त का चर्चित चेहरा रहे जगदीप धनखड़ अब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त किए गए हैं. राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रह चुके धनखड़ सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी रहे हैं, राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है. धनखड़ को ऐसे वक्त पश्चिम बंगाल का गर्वनर नियुक्त किया गया है, जब टीएमसी और बीजेपी में तनाव चरम पर है. धनखड़ को पश्चिम बंगाल जैसे सूबे का राज्यपाल बनाने के पीछे भी इनकी ये खूबियां ही हैं, जिसके लिए वे जाने जाते हैं.

सियासी दांवपेंच और कानून के जानकार हैं धनखड़
धनखड़ कानून, सियासत, सियासी दांवपेंच औऱ हर पार्टी के अंदर अपने संबंधों की महारत के लिए जाने जाते हैं. वे राजस्थान की जाट बिरादरी आते हैं और राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इस समुदाय में धनखड़ की अच्छी खासी साख है. धनखड़ की नियुक्ति का एक मकसद शायद इस बिरादरी के बीच संदेश भी हो.

बंगाल में मारवाड़ियों का खासा प्रभाव है
पश्चिम बंगाल में मारवाड़ियों का अच्छा खास प्रभाव है. मारवाड़ी समुदाय का बिजनेस के साथ  सियासत में भी दखल है. बीजेपी इस समुदाय को हमेशा से अपना वोट बैंक मानती है. बंगाल में राजस्थान मूल के समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शेखावाटी यानी सीकर और झुंझुनूं से ताल्लुक रखता है. झुंझुनूं  धनखड़ की जन्मभूमि के साथ कर्मभूमि भी रही.

जनता दल और कांग्रेस में भी रहे
धनखड़ केंद्रीय मंत्री भी रहे. झुंझुनूं से 1989 से 91 तक वे जनता दल से सांसद रहे. हालांकि बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. अजमेर से कांग्रेस टिकट पर वे लोकसभा चुनाव हार गए थे. फिर धनखड़ 2003 में बीजेपी में शामिल हो गए, अजमेर के किशनगढ़ से विधायक चुने गए. धनखड़ सिर्फ नेता ही नहीं माने हुए वकील भी हैं. वे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं तथा राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी रह चुके हैं.

झुंझुनूं जिले के जाट परिवार में हुआ जन्म
जगदीप धनखड़ का जन्म झुंझुनूं जिले के गांव किठाना में साल 1951 में साधारण किसान परिवार में हुआ था। धनखड ने राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की पढाई पूरी की थी। धनखड़ का चयन आईआईटी, एनडीए और आईएएस के लिए भी हुआ था, लेकिन उन्होंने वकालात को चुना। उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत भी राजस्थान हाईकोर्ट से की थी। वे राजस्थान बार काउसिंल के चेयरमेन भी रहे थे। 

जनता दल से की राजनीति की शुरुआत
धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी। धनखड़ 1989 में झुंझनुं से सांसद बने थे। उन्हें 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था। हालांकि जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और अजमेर के किशनगढ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़ा और विधायक बने। 2003 में उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 70 साल के जगदीप धनखड़ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 30 जुलाई 2019 को बंगाल का 28वां राज्यपाल नियुक्त किया था। 

जगदीप धनखड़ सिर्फ नेता ही नहीं, बल्कि माने हुए वकील भी हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों में उनका नाम शुमार किया जाता है। वे राजस्थान की जाट बिरादरी आते हैं और राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। इस समुदाय में धनखड़ की खासी साख है। भाजपा उनके जरिए जाटों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। 

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