सत्ता छीनकर शिंदे ने सरकार ने की है महज शुरुआत? अभी भी उद्धव ठाकरे का बहुत कुछ दांव पर
मुंबई
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सरकार बना ली है। कहा जा रहा था कि इसके साथ ही करीब एक पखवाड़े चला सियासी ड्रामा खत्म हो गया, लेकिन अगर सत्ता से हटकर अन्य चीजों पर नजर डालें तो यह महज जंग की शुरुआत नजर आती है। उद्धव ठाकरे ने भले ही सत्ता गंवा दी हो, लेकिन अभी भी उनके पास शिवसेना का नाम, चिन्ह, समेत कई चीजें मौजूद हैं। हालांकि, संभावनाएं ये भी हैं कि दोनों गुट समझौता कर सकते हैं। ऐसा होने पर चल रहे सियासी संघर्ष पर विराम लग सकता है।
पहले समझें उद्धव के पास अब क्या है
पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे के पास शिवसेना के नाम और चुनावी चिन्ह के अलावा सांसद और बचे हुए विधायक हैं। इसके अलावा बृह्नमुंबई महानगरपालिका और अन्य निगम भी उनके पास हैं। पार्टी के मामले में राष्ट्रीय कार्यकारिणी, पदाधिकारी, संबंधित युवा और महिला विंग, सेना भवन समेत सेना के दफ्तरों और फंड के फिलहाल ठाकरे ही अधिकारी हैं।
नाम और चिन्ह पर चर्चा
सीएम शिंदे के पास भले ही 55 में से 40 विधायकों का समर्थन हो, लेकिन यह पार्टी का नाम और चिन्ह हासिल करने के लिए काफी नहीं है। इस मामले में भारतीय निर्वाचन आयोग ही फैसला लेगा। खास बात है कि इससे पहले शिंदे ने अपने गुट का नाम शिवसेना बालासाहब ठाकरे रखने का प्रस्ताव रखा था, जिसका उद्धव पक्ष ने काफी विरोध किया था।
सांसद और विधायकों का क्या?
फ्लोर टेस्ट के दौरान एकनाथ-देवेंद्र यानि ED गठबंधन का समर्थन नहीं करने के चलते उद्धव गुट के विधायक अयोग्यता का सामना कर सकते हैं। वहीं, बुधवार को दावा किया गया कि 19 में से 12 विधायक शिंदे खेमे के समर्थन में हैं। हालांकि, ठाकरे सांसदों को जोड़े रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि कई सांसद पक्ष बदल सकते हैं। हिंदुत्व विचारधारा से समझौता, कांग्रेस और राष्ट्रवादी पार्टी के साथ सीट का बंटवारा समेत कई कारण शामिल हो सकते हैं।
BMC चुनाव
अक्टूबर-नवंबर में BMC के चुनाव हो सकते हैं। हालांकि, शिंदे गुट की राह इस मामले में पूरी तरह आसान नहीं होगा। कारण है कि समूह के कुछ ही विधायक मुंबई से हैं। वहीं, वर्ली से विधायक आदित्य ठाकरे भी शिवसेना की जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। BMC पर साल 1997 से ही शिवसेना का नियंत्रण है। पार्टी इसमें पहले भाजपा के साथ थी, लेकिन बाद में अकेले ही शासन जारी रखा। फिलहाल, 227 सदस्यीय सदन में शिवसेना के पास 84 और भाजपा के पास 8 सदस्य हैं। साथ ही इस साल होने जा रहे परिसीमन के बाद सीटों का आंकड़ा बढ़कर 236 हो जाएगा। इसी तरह ठाणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (TMC) में भी तीन दशक से शिवसेना का नियंत्रण है। लेकिन इसका बड़ा कारण शिंदे को ही माना जाता है। सत्ता बदलने के बाद शिवसेना के कई पार्षदों और पार्टी कार्यकर्ताओं ने शिंदे का समर्थन करने का फैसला किया है। ऐसे में TMC भी ठाकरे परिवार के हाथों से फिसल सकता है।
शिवसेना के दफ्तर और पदाधिकारी
करीब 50 लाख सदस्य और पार्टी कार्यकर्ता आमतौर पर बहाव के साथ रहते हैं, लेकिन पदाधिकारियों और पार्टी से जुड़े मोर्चों पर नियंत्रण हासिल करने अहम है। हाल ही में विधायक दल में हुई बगावत के बाद उद्धव राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों, नगरसेवकों के साथ बैठकें कर रहे हैं। हालांकि, माना जा रहा है कि राज्य सरकार में प्रमुख पद हासिल करने के बाद उद्धव कैंप में बगावत करना शिंदे के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगी।