भगवंत मान की बढ़ेगी टेंशन, पंजाब में गुजरात मॉडल लागू करेगी भाजपा, PM मोदी के करीबी की एंट्री
नई दिल्ली । लंबे समय से गठबंधन राजनीति के चलते पंजाब में कमजोर पड़ी भाजपा को अब मजबूत करने की कवायद शुरू हो गई है। सीमावर्ती राज्य होने से पंजाब कूटनीतिक, सामरिक और राजनीतिक तीनों दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। पूरे उत्तर भारत में पंजाब ही ऐसा राज्य है जो भाजपा की पहुंच से काफी दूर दिख रहा है, ऐसे में वह राज्य में अपनी जमीन तैयार करने और उसके बाद चुनाव अभियान की रणनीति पर काम करेगी। भाजपा नेतृत्व ने अपने इस अभियान की कमान गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के नए प्रभारी विजय रूपाणी को सौंपी है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर भारत में पंजाब ही भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी है। लंबे समय तक राज्य में अकाली दल के साथ गठबंधन में रहने के कारण भाजपा यहां पर पूरे राज्य में कभी ठीक तरह से काम नहीं कर पाई है। गठबंधन में वह विधानसभा की लगभग दो दर्जन और लोकसभा की एक चौथाई सीटों तक ही सिमटी रही। लेकिन अब अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के बाद पार्टी अपने विस्तार की योजना पर काम कर रही है। पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच 1997 में पहली बार गठबंधन हुआ था जो बीते विधानसभा चुनाव में टूट गया। 1997 में ही पहली बार भाजपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। भाजपा ने गठबंधन में रहते हुए विधानसभा की 23 (कुल 117) और लोकसभा की तीन सीटों (कुल 13) पर चुनाव लड़ा। भाजपा को विधानसभा में सबसे बड़ी सफलता 2007 के चुनाव में मिली, जब पार्टी ने 23 में से 19 सीटें जीतीं। इसके पहले 1997 में उसने 23 में से 18 सीटें जीती थी। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दो बार गठबंधन में अपने हिस्से की तीनों सीटें जीतने में सफलता हासिल की। 1998 और 2004 में उसने अपने हिस्से की अमृतसर, गुरुदासपुर और होशियारपुर सीटें जीतीं। इसके पहले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा और अकाली दल का गठबंधन था तब राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने 13 में से आठ सीटें (40.12 फीसद वोट) जीती थी, जबकि भाजपा और अकाली दल के गठबंधन को चार सीटें (दोनों को दो-दो) मिली थी। अकाली दल को 27.76 फीसद वोट और भाजपा को 9.63 फीसद वोट मिले थे, जबकि आम आदमी पार्टी को मात्र एक सीट यानी 7.38 फीसद वोट मिले थे। लोकसभा, विधानसभा चुनाव के बीच राज्य के समीकरण पूरी तरह बदल गए थे। किसान आंदोलन और कैप्टन अमरिंदर सिंह का कांग्रेस से बाहर जाना काफी महत्वपूर्ण पहलू रहे थे। इसके साथ ही भाजपा और अकाली दल का गठबंधन भी टूट गया था। अब जबकि राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है, तब केंद्र सरकार की चिंताएं बढ़ी हैं। एक तो सीमावर्ती राज्य और दूसरे खालिस्तानी अभियान को लेकर मिल रहे खुफिया इनपुट काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसके अलावा राजनीतिक रूप से भी भाजपा के लिए पंजाब बड़ी चुनौती है।