राजनीतिक

पांडवों की राजधानी से खुलता है विधानसभा का द्वार? जो जीता हस्तिनापुर उसी की बनी यूपी में सरकार

नई दिल्ली।

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हस्तिनापुर निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आने के बाद से विधानसभा चुनाव परिणामों से पता चला है कि जिस भी राजनीतिक दल ने इस विधानसभा सीट पर जीत हासिल की है उसने हमेशा राज्य में सरकार बनाई है। 1957 में जब निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आया तो कांग्रेस को यहां जीत मिली। 2017 के चुनाव में इस सीट को जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लॉटरी यूपी में लगी।

आपको बता दें कि हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हस्तिनापुर महाभारत युद्ध के बाद वहां से शासन करने वाले पांडवों की राजधानी थी।

हस्तिनापुर सीट का इतिहास
1957 में कांग्रेस उम्मीदवार बिशंभर सिंह ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के प्रीतम सिंह को हराकर सीट जीती। यूपी में कांग्रेस की सरकार बनी और संपूर्णानंद यूपी के मुख्यमंत्री बने। 1962 और 1967 में भी कांग्रेस ने हस्तिनापुर सीट जीती और सरकार बनाई।
 

1967 के बाद से मेरठ जिले में हस्तिनापुर अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए एकमात्र आरक्षित सीट रही है। 1969 में कांग्रेस भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) की आशा राम इंदु से हार गई। 1967 में कांग्रेस से अलग होने के बाद चौधरी चरण सिंह द्वारा BKD का गठन किया गया था। बाद में सिंह 1969 में दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने।

कांग्रेस ने 1974 में फिर से यह सीट जीती जिसमें रेवती रमन मौर्य हस्तिनापुर के विधायक और फिर हेमवती नंदन बहुगुणा यूपी के मुख्यमंत्री बने। पार्टी ने 1976 में सत्ता संभाली थी जब एनडी तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री थे।

1977 में रेवती रमन मौर्य ने जनता पार्टी (जेपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता।  जेपी नेता राम नरेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने।

1980 में, कांग्रेस (आई) के झग्गर सिंह ने सीट से चुनाव जीता और विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री बने।

1985 में, कांग्रेस के हर्षरन सिंह ने सीट जीती और एनडी तिवारी फिर से मुख्यमंत्री बने।

1989 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और उसी वर्ष झगड़ सिंह ने जनता दल (समाजवादी) के उम्मीदवार के रूप में हस्तिनापुर सीट जीती। 11वीं और 12वीं विधानसभाओं में हस्तिनापुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव नहीं हुए।

1996 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई और पार्टी उम्मीदवार अतुल खटीक ने हस्तिनापुर सीट पर कब्जा कर लिया।

समाजवादी उम्मीदवार प्रभु दयाल बाल्मीकि ने पहली बार 2002 में हस्तिनापुर से जीत हासिल की, जहां मायावती ने एक साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद संभाला और फिर मुलायम सिंह यादव ने शेष अवधि के लिए सत्ता हासिल की।

2007 में बसपा के योगेश वर्मा ने सीट जीती और मायावती ने राज्य में सरकार बनाई।

2012 के चुनावों में बाल्मीकि फिर से बसपा उम्मीदवार योगेश वर्मा पर 6,641 मतों के अंतर से विजयी हुए। अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने।

2017 में बीजेपी के दिनेश खटीक ने बसपा को योगेश वर्मा को हराया और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

इस चुनाव में दोनों उम्मीदवार मैदान में हैं। वर्मा सपा-रालोद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने अर्चना गौतम को और बसपा ने संजीव जाटव को उम्मीदवार बनाया है।

बीजेपी के दिनेश खटीक से इस चुनावी संयोग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, "जो कोई भी हस्तिनापुर जीतता है, वह यूपी में सरकार बनाता है। मेरे पास सभी का आशीर्वाद है और योगी आदित्यनाथ फिर से सरकार बनाएंगे। योगी जी और मोदी जी के नेतृत्व में हम सभी वर्गों को लाभ पहुंचाया है, महिलाएं भी सशक्त हुई हैं।"

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2022 के राज्य चुनावों में हस्तिनापुर सीट कौन जीतेगा और क्या जीतने वाली पार्टी उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बनाती है।

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