राजनीतिक

मणिपुर में आसान नहीं किसी भी दल की राह

 नई दिल्ली

मणिपुर को भारत का मणि कहा जाता है और फुटबॉल का जुनून लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह खुद भी एक मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी रहे हैं। मगर, मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी लोकप्रियता कम हुई है। भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है। कांग्रेस चुनाव में इस नाराजगी को वोट में बदलना चाहती है। लेकिन कांग्रेस के पास नेतृत्व का संकट है। ऐसे में किसी के लिए राह आसान नहीं है।

सत्ता बचाने की चुनौती
राज्य में भाजपा के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है। पार्टी ने इन चुनाव में 40 सीट का लक्ष्य रखा है। हालांकि, 2017 के चुनाव में भाजपा सिर्फ 21 सीट जीती थी। भाजपा ने छोटे-छोटे स्थानीय दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई और 60 सदस्य विधानसभा में 28 सीट जीतने के बावजूद कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।

बड़े चेहरे की कमी
इन पांच साल में कांग्रेस ने खुद मजबूत बनाने की कोशिश की, पर पार्टी विधायकों और नेताओं के पार्टी बदलने से प्रयास बहुत कामयाब नहीं हुआ। पार्टी की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसके पास स्थानीय स्तर पर बड़े चेहरों की कमी है। क्योंकि, तीन बार के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी पार्टी की ताकत और कमजोरी दोनों हैं।
 
 इबोबी सक्रिय नहीं
इबोबी के खिलाफ ईडी की जांच चल रही है। इसके साथ वह पिछले पांच साल में बहुत सक्रिय नहीं रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारे पास ईबोबी के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। क्योंकि, उनके 15 साल के शासनकाल में मणिपुर में शांति, प्रगति और समृद्धि आई। वह अच्छे प्रशासक रहे हैं। मणिपुर में यूं तो कई स्थानीय मुद्दे हैं, पर कांग्रेस इन चुनाव में अफ्स्पा को बडा मुद्दा बना रही है। पार्टी ने सत्ता में आने के बाद पूरे मणिपुर से अफ्स्पा को खत्म करने का वादा किया है। ऐसे में पार्टी इबोबी सरकार के काम की याद दिलाते हुए लोगों से वोट मांगेगी। पर अफ्स्पा कितना बड़ा मुद्दा साबित होगा, इसको लेकर पार्टी में एक राय नहीं है।

इरोम को 90 वोट मिले थे
कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि अफ्स्पा के खिलाफ इरोम शर्मिला ने 16 साल तक लगातार अनशन किया था। उनके इस आंदोलन का देश और विदेश में नाम था। पर जब वह 2017 के चुनाव में खड़ी हुई, तो उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि अफ्सपा खत्म करने का वादा कितना फायदा पहुंचाएगा।

तृणमूल भी मैदान में
मणिपुर में तृणमूल कांग्रेस भी अपनी किस्मत आजमा रही है। 2012 के चुनाव में तृणमूल को सात और 2017 के चुनाव में एक सीट मिली थी। पश्चिम बंगाल में सत्ता बरकरार रखने के बाद तृणमूल पूरी शिद्दत से मणिपुर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है।

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