धर्म

 इच्छा का लक्ष्य है खुशी 

बुरी आदत को छोड़ने की असमर्थता तुम्हें तकलीफ देती है। जब तुम बहुत पीड़ित होते हो, वह व्यथा तुम्हें उस आदत से छुटकारा दिलाती है। जब तुम अपनी कमियों से व्यथा महसूस करते हो, तब तुम साधक हो। पीड़ा तुम्हें आसक्ति से दूर करती है। यदि अपने दुर्गुणों को हटा नहीं सकते, तो उन्हें विस्तृत कर दो। चिन्ता, अभिमान, प्रोध, कामना, दुख सबको एक और बड़ा आयाम दे दो, एक दूसरी दिशा। छोटे-छोटे विषयों पर नाराज होने का क्या तुक है? नाराज होना है तो अनन्तता के प्रति, ब्रह्म के प्रति हो। यदि तुम अपने अहंकार को नहीं खत्म कर सकते तो अहंकार करो कि ईश्वर तुम्हारे हैं। यदि आसक्ति तुम पर छाई है, तो सत्य के प्रति आसक्त हो जाओ। यदि ईर्श्या तुम्हें सताती है, तो सेवा के लिए ईर्श्या करो। द्वेष के प्रति द्वेष रखो; गुरु से राग करो। दिव्यता के प्रति मदहोश हो जाओ।  
इन्द्रिय सुखों की इच्छाएं विद्युत की तरह हैं; जैसे-जैसे वे विषय विस्तुओं की ओर बढ़ती है, निष्प्रभावी हो जाती हैं। अपनी कुशलता से यदि तुम इच्छाओं को अपने भीतर मोड़ सको- अपने अस्तित्व के केन्द्र की ओर- तो तुम्हें मिलेगा एक और आयाम- चिरन्तन सुख, रोमांच, परमानन्द और शात प्रेम। वासना, लोभ और ईष्र्या इसलिए शक्तिशाली हैं क्योंकि ये केवल ऊर्जा हैं और तुम ही इनके स्रेत हो- वह विशुद्ध ऊर्जा। निष्ठा और भक्ति तुम्हारी ऊर्जा को शुद्ध बनाए रखती हैं, तुम्हें उन्नत करती हैं।  
जब तुम यह समझ लेते हो कि तुम स्वयं ही सुख की विद्युत धारा हो, तुम्हारी लालसाएं घटने लगती हैं और प्रशांति आती है। मृत्यु निश्चित है – यह याद रखने से तुम वर्तमान क्षण में सजीव रहते हो, राग और द्वेष से मुक्त। इच्छा खुशी को खत्म करती है, लेकिन सभी इच्छाओं का लक्ष्य है खुशी। जब भी जीवन से खुशी गायब होने लगे, भीतर गहराई में झांककर देखो- तुम पाओगे यह इच्छा के कारण हो रहा है। लेकिन हमारी इच्छा ही केवल खुशी है। कोई जीव आज तक पैदा नहीं हुआ जिसे दु:ख की चाह हो- न ऐसा पहले कभी हुआ है, न भविष्य में होगा। जब तुम्हारा छोटा मन इधर-उधर, जब जगह भागते-भागते थक जाता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है, मेरी इच्छाओं ने मेरी खुशी छीन ली है। 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button