27 फरवरी से होलाष्टक, 8 दिन नहीं होंगे शुभ कार्य
सीहोर। यदि आपको अपने कोई शुभ कार्य करना है तो अभी करें। 27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे। ये 7 मार्च तक रहेंगे, इसलिए इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं हो सकेंगे। दरअसल होलाष्टक के आठ दिन के समय को अशुभ माना जाता है। इस दिन किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। होलिका दहन के दिन होलाष्टक समाप्त होता है, इसके बाद होली मनाई जाती है।
होलाष्टक का आरंभ : 27 फरवरी 2023, सोमवार के दिन से होगा।
8 दिन क्यों माने जाते हैं अशुभ-
स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषचार्य डॉ. पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि भक्त प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन माने जाते हैं। होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है, तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली या धुलेंडी मनाई जाती है।
डा. पंडित गणेश शर्मा के अनुसार इस दिन से मौसम परिवर्तन होता है, सूर्य का प्रकाश तेज हो जाता है और साथ ही हवाएं भी ठंडी रहती हैं। ऐसे में व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है और मन की स्थिति भी अवसाद ग्रस्त रहती है। इसीलिए मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। हालांकि होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है अष्टमी को चंद्रमा, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र और द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से मनुष्य की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है। इस कारण मनुष्य अपने स्वभाव के विपरीत फैसले कर लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति के मन को रंगों और उत्साह की ओर मोड़ दिया जाता है, इसलिए शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।
कामदेव को किया था भस्म –
राजा हिमालय की पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए, परंतु शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। शिव जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी, तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई। जब कामदेव की पत्नी शिव जी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिवजी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्रीकृष्ण के यहां उनके पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेते हैं। फिर शिव जी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसलिए पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर अपने सच्चे प्रेम का विजय उत्सव भी मनाया जाता है।