धर्म

Holi 2022: होली पर रहेगी पाताल वासिनी भद्रा, दहन में नहीं रहेगी बाधा

 नई दिल्ली

    भद्रा : दोपहर 1.31 से अपर रात्रि 1.10 बजे तक
    प्रदोषकाल : सायं 6.33 से रात्रि 8.58 बजे तक
    भद्रापुच्छ : रात्रि 9.03 से 10.15 बजे तक

 

फाल्गुन पूर्णिमा पर 17 मार्च 2020, गुरुवार को होलिका दहन किया जाएगा। इस बार होलिका दहन में भद्रा का साया है, लेकिन प्रदोषकाल में पाताल वासिनी भद्रा होने के कारण दहन में कोई बाधा नहीं आएगी। पाताल वासिनी भद्रा में होलिका दहन करने की अनुमति शास्त्र देते हैं। पंचांग के अनुसार 17 मार्च को दोपहर 1.31 बजे से अपर रात्रि 1.10 बजे तक भद्रा रहेगी। जबकि प्रदोषकाल सायं 6.33 से रात्रि 8.58 बजे तक रहेगा। इस समय में होलिका दहन किया जा सकता है। इसके बाद रात्रि में भद्रापुच्छ में 9.03 से 10.15 बजे तक भी होलिका दहन किया जा सकता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, शूल योग, वणिज-बव करण तथा कन्या राशि का चंद्रमा रहेगा।

भद्रा रहेगी, लेकिन बाधा नहीं

शास्त्र कहते हैं होलिका दहन भद्रा में करना निषेध है। यदि भद्रा मध्यरात्रि के बाद समाप्त हो रही है तो भद्राकाल के अंतर्गत आ रहे प्रदोषकाल में एवं मतमतांतर से भद्रापुच्छ में होलिका दहन करने की शास्त्राज्ञा है। मध्यरात्रि काल 12 बजकर 57 मिनट तक है और भद्रा मध्यरात्रि के बाद 1 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। इस बार प्रदोषकाल में पाताल वासिनी भद्रा रहेगी जो शुभफल प्रदान करेगी। इसलिए परिवार में सुख शांति तथा संतान की दीर्घायु के लिए फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका पूजन दहन करना श्रेष्ठ रहेगा।

भद्रा के बारे में मत-

    निशीथोत्तरं भद्रा समाप्तौ भद्रामुखं त्यक्त्वा भद्रायामेव। – धर्मसिंधु
    प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या पौर्णिमा फाल्गुने सदा ।
    तस्यां भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्या होलानिशामुखे ।।

 

कैसे किया जाता है भद्रा

    मुहूर्त चिंतामणि समेत अनेक ग्रंथों में भद्रा के संबंध में विस्तार से बताया गया है। भद्रा का विचार चंद्रमा के राशियों में गोचर से निर्धारित किया जाता है।
    मेष, वृषभ, मिथुन तथा वृश्चिक राशि का चंद्रमा होने पर भद्रा स्वर्ग लोक में वास करती है।
    कन्या, तुला, धनु तथा मकर राशि का चंद्रमा होने पर भद्रा पाताल लोक में वास करती है।
    कुंभ, मीन, कर्क तथा सिंह का चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्युलोक में वास करती है।
    धर्मशास्त्रों के अनुसार मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी पर वास करने वाली भद्रा में शुभ कार्य करना वर्जित है। स्वर्ग तथा पाताल लोक में वास करने वाली भद्रा शुभ मानी गई है।

 

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