धर्म

पौष पूर्णिमा संग आज से शुरू होगा कल्पवास, जानिए शास्त्रों में बताए गए कल्पवास के 21 नियम

 प्रयागराज

माघ महीने का दूसरा प्रमुख स्नान पर्व पौष पूर्णिमा के साथ सोमवार को होगा। इस पर्व के साथ ही संगम की रेती पर एक महीने चलने वाले कल्पवास की शुरुआत होगी। दूसरे प्रमुख स्नान पर्व के पहले मेला प्रशासन ने तैयारियों को अंतिम रूप दिया है। घाटों पर सफाई कराई गई, जबकि सभी चेंजिंग रूम भी दुरुस्त कराए गए। पुआल बिछवाया गया। अनुमान है कि पौष पूर्णिमा के अवसर पर लगभग चार लाख लोग संगम की रेती में स्नान करेंगे।

मेला क्षेत्र में रविवार को भी कल्पवासियों का आगमन लगातार बना रहा। सभी शिविरों में कल्पवासी पहुंच चुके हैं। हालांकि गंगापार इलाके में प्रशासनिक लापरवाही आखिरी समय में भी दिखाई दी। प्रशासन के श्रमिक तमाम शिविरों में टिन घेरे पर कील ठोंककर उसे दुरुस्त कर रहे थे। तीर्थ पुरोहितों का एक भी शिविर ऐसा नहीं था जहां पर सभी काम पूरा हो चुका हो।

नल, बिजली, शौचालय और छोलदारी अब तक नहीं मिली है। इसके चलते जो भी कल्पवासी आए हैं वो शिविरों में ठूंसकर भरे हुए हैं, इस ठंड के मौसम में सभी को छत चाहिए, लेकिन मेला प्रशासन की ओर से यहां पर कोई प्रबंध नहीं किया गया है। इसे लेकर तीर्थ पुरोहितों में भी खासा आक्रोश है। संगम की रेती पर आस्था का मेला सबको आकर्षित कर रहा है। तंबुओं की नगरी की पावन छटा रविवार रात दूधिया रोशनी के बीच अद्भुत नजर आई।
 

प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

इविवि बायो रसायन के विभागाध्यक्ष डॉ. बेचन शर्मा ने बताया कि कल्पवास से चित्त का शुद्धिकरण होता है। प्रदूषणमुक्त वातावरण से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ जाता है। इससे तंत्रिकाओं में रक्त संचरण सुचारु रूप से होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

तन-मन में स्फूर्ति

इविवि रसायन विभाग के डॉ. दिनेश मणि ने कहा कि कल्पवास से तनाव दूर होता है। संयमित जीवन शैली से शरीर में एंटीबॉडी बनती है। इसका असर यह होता है कि शरीर में रोग पनप नहीं पाता बल्कि प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने लगती है। पाचन शक्ति बढ़ने से तन-मन में स्फूर्ति बनी रहती है।

शास्त्रों में कल्पवास के हैं 21 नियम

शास्त्रत्तें में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। इनमें झूठ ना बोलना, घर- गृहस्थी की चिंता से मुक्त रहना, तीन बार गंगा स्नान करना, शिविर में तुलसी का पौधा रोपना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, खुद या पत्नी के बनाए भोजन को ग्रहण करना, उपदेश सत्संग में भाग लेना, जमीन पर सोना, स्वल्पाहार या फलाहार का सेवन, सांसारिक चिंता से मुक्ति, इंद्रियों पर संयम, पितरों का पिंडदान, ब्रह्मचर्य का पालन, अहिंसा, विलासिता का त्याग प्रमुख रूप से हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button