जानें क्यों खास है काशी की देव दिवाली, बन रहा है शुभ संयोग
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली मनाई जाती है. इस बार देव दिवाली 7 नवंबर 2022 दिन सोमवार को मनाई जाएगी. इस दिन देवताओं ने दीपावली मनाई और असुर भाइयों पर भगवान शिव की विजय का जश्न मनाया, जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिपुरासुर के रूप में जाना जाता है.
देव दीपावली 2022 शुभ संयोग
इस साल देव दीपावली पर कई शुभ संयोग बन रहे हैं. इस दिन अभिजीत मुहूर्त व रवि योग समेत कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं.
ब्रह्म मुहूर्त- 04:53 am से 05:45 am
अभिजित मुहूर्त- 11:43 am से 12:26 pm
विजय मुहूर्त- 01:54 pmसे 02:37 pm
गोधूलि मुहूर्त- 05:32 pmसे 05:58 pm
अमृत काल- 05:15 pm से 06:54 pm
रवि योग- 06:37 am से 12:37 am, नवम्बर 08
इसलिए खास है देव दिवाली
हालांकि कम ही लोगों को मालूम होगा कि आज से लगभग साढ़े तीन दशक पहले गंगा किनारे ऐसा नजारा नहीं था. सिर्फ कार्तिक मास की पूर्णिमा को चंद दीपक ही जलाए जलाए जाते थे, लेकिन इस आस्था को लाखों लोगों से जोड़ते हुए लोक महोत्सव के रूप में बदलने का बीड़ा अगर किसी ने उठाया तो वे थे, वाराणसी के प्राचीन मंगला गौरी मंदिर के महंत और देव दीपावली के संस्थापक पंडित नारायण गुरू.
क्या कहा गया है शास्त्रों में
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके स्वागत में धरती पर दीप जलाये जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार संध्या के समय शिव-मन्दिर में भी दीप जलाये जाते हैं. शिव मन्दिर के अलावा अन्य मंदिरों में, चौराहे पर और पीपल के पेड़ व तुलसी के पौधे के नीचे भी दीये जलाए जाते हैं.
देव दीपावली की मान्यता
काशी में देव दीपावली मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को स्वर्ग वापस लौटाया था. तारकासुर के वध के बाद उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का प्रण किया. उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या की और सभी ने एक-एक वरदान मांगा. वरदान में उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि जब ये तीनों नगर अभिजित नक्षत्र में एक साथ आ जाएं तब असंभव रथ, असंभव बाण से बिना क्रोध किए हुए कोई व्यक्ति ही उनका वध कर पाए. इस वरदान को पाए त्रिपुरासुर अमर समझकर आतंक मचाने लगे और अत्याचार करने लगे और उन्होंने देवताओं को भी स्वर्ग से वापस निकाल दिया. परेशान देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे. भगवान शिव ने काशी में पहुंचकर सूर्य और चंद्र का रथ बनाकर अभिजित नक्षत्र में उनका वध कर दिया. इस खुशी में देवता काशी में पहुंचकर दीपदान किया और देव दीपावली का उत्सव मनाया.