धर्म

परमात्मा का दिव्य उपहार है जीवन 

मानव जीवन परमात्मा का दिव्य उपहार है। जिंदगी को जीना सीखें। कुछ लोग जिंदगी को जीते हैं, कुछ लोग काटते हैं। जिसको जीना और जाना आ गया वह जीवन में सफल हो गया।  हे मनुष्य एक दिन भी जी, अटल विश्वास बनकर जी। ब्राह्मो मुहूर्ते बुध्येत, धर्मार्थों चातुचिन्तयेत्? अर्थात्? व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में जागे और धर्म एवं अर्थ के विषय में चिंतन करें। शास्त्रकारों ने यह कभी नहीं कहा कि व्यक्ति अर्थोपार्जन न करे। वह अर्थोपार्जन करे किंतु धर्मपूर्वक, अधर्मपूर्वक नहीं।   
हमें न तो आध्यात्मिकता की उपेक्षा करनी है न भौतिक सुख सुविधाओं की है। ब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति जितना अच्छा चिंतन कर सकता है उतना दूसरे समय में नहीं। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह सर्वोत्तम समय है। बिल कोस्बो ने इस संदर्भ में कहा है कि मुझे नहीं मालूम कि कामयाबी पाने की पुंजी क्या है, पर हर आदमी को खुश करने की कोशिश करना ही नाकामयाबी की पुंजी है।   
जीवन में यदि आप सफल होना चाहते हैं तो प्रसन्न रहने की आदत डालिए, क्योंकि सफलता और प्रसन्नता का चोली दामन का साथ है। हम जो चाहें हमारे जीवन का जो लक्ष्य हो उसे पा लें यह सफलता है और जब मन चाहे लक्ष्य को पा लेंगे तो स्वभावत: प्रसन्नता का अनुभव करेंगे।  हम जिंदगी को काटे नहीं, सच्चे अर्थों में जीएं। हम निरंतर परिश्रम करें। जॉन एच रोटस ने अपने संदेश में कहा है- सिर्फ जिंदगी न गुजारो-जीओ,  सिर्फ छुओ नहीं महसूस करो, सिर्फ देखो नहीं गौर करो, सिर्फ पढ़ो नहीं जीवन में उतारो।  
हमारा जीवन बहिर्मुखी न होकर अंतर्मुखी होना चाहिए। उसमें उथलापन नहीं, आडंबर नहीं, गंभीरता होनी चाहिए। हमारे आदर्श ऊंचे होने चाहिए और विचार सात्विक। बाहरी साज-सज्जा, शरीर की चमक दमक से कोई व्यक्ति न तो महान बन सकता है, न ही सफलता उसके चरण चूमती है।  
 

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