हर शुक्रवार को करें श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम का पाठ, संतान, धन, विद्या समेत 8 सुखों की होगी प्राप्ति
आज शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी की पूजा का है. आज आप श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम का पाठ करें. श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम का पाठ करने से व्यक्ति को संतान, धन, विद्या समेत 8 प्रकार की लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
काशी के पंडित शिवम शुक्ला बताते हैं कि माता लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, भाग्य लक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी. श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम के पाठ से अष्टलक्ष्मी का आह्वान किया जाता है. अष्टलक्ष्मी स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है, इसका शुद्ध उच्चारण करते हुए पाठ करना चाहिए. इससे पूर्व आपको विधिपूर्वक माता लक्ष्मी की पूजा कर लेनी चाहिए.
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम
आदि लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम्।
धान्य लक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम्।
धैर्य लक्ष्मी
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम्।
गज लक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।
सन्तान लक्ष्मी
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम्।
विजय लक्ष्मी
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम्।
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्।
विद्या लक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे।
धन लक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम।