धर्म

आज है आमलकी एकादशी, जान लें मुहूर्त, पूजा विधि, कथा, पारण समय, व्रत में आंवले के पेड़ की पूजा अनिवार्य

Amalaki Ekadashi 2023: आज 3 मार्च शुक्रवार को आमलकी एकादशी व्रत है. इस दिन रंगभरी एकादशी भी है. हिंदू शास्त्र में हर एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है.

वैसे हर मास दो एकादशी पड़ती है. मार्च महीने में भी दो एकादशी हैं. इनमें से एक एकादशी होली से पहले पड़ेगी, जो बहुत खास है. लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि फाल्गुन मास में पड़ने वाली आमलकी एकादशी का अपना ही महत्व है. इस दिन खासतौर पर आंवले के पेड़ की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि एकादशी का श्री हरि विष्णु से संबंध है. आइए जानते हैं आमलकी एकादशी के मुहूर्त, पूजा विधि, पारण समय और कथा.

 

आमलकी एकादशी का महत्व

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू पंचाग के मुताबिक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है. इस दिन विधि-विधान से जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के पेड़ पर भगवान विष्णु का वास होता है. वहीं, एकादशी का व्रत करने से जातक को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

आमलकी एकादशी का व्रत

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक इस बार आमलकी एकादशी 3 मार्च 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से कृपा प्राप्त होती है. ऐसा बताया गया है कि रात्रि जागरण करने से श्री हरि विष्णु प्रसन्न होते हैं.

आमलकी एकादशी 2023 मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आमलकी एकादशी की शुरुआत गुरुवार 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से होगी, जो अगले दिन शुक्रवार 3 मार्च 2023 को 9 बजकर 12 मिनट तक जारी रहेगी. हिंदू धर्म में उदयातिथि ली जाती है, इसलिए आमलकी एकादशी 3 मार्च को मनाई जाएगी. वहीं, पारण का समय 4 मार्च को सुबह 6 बजकर 48 मिनट से सुबह 9 बजकर 9 मिनट तक रहेगा.

आमलकी एकादशी व्रत कथा

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आमलकी एकादशी को लेकर तमाम पौराणिक कथाएं प्रचलित है. उन्होंने बताया कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति श्री हरि विष्णु के नाभि से हुई थी, लेकिन ब्रह्मा जी अपने जीवन के बारे में जिज्ञासु थे. वे जानना चाहते थे कि उनके जीवन का उद्देश्य क्या है. उनका जन्म क्यों और कैसे हुआ है. इन्हीं सब बातों को जानने के लिए ब्रम्हाजी ने भगवान विष्णु की तपस्या करनी शुरू कर दी. काफी सालों तक उन्होंने कठोर तपस्या की. आखिरकार एक दिन विष्णुजी उनकी तपस्या पर बेहद प्रसन्न हुए और उनको दर्शन दिए.

भगवान विष्णु को देख भावुक हुए ब्रह्माजी

जब ब्रह्माजी ने अपने नेत्र खोले तो सामने विष्णुजी को खड़े पाया. तुरंत ही उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे. जैसे ही उनके आंसू भूलोक पर पड़ते वैसे ही वह आंवले में बदल जाते. इस प्रकार आंवले की भी उत्पत्ति हुई. जानकारों के मुताबिक उस दिन एकादशी का दिन था. अंत में विष्णु भगवान ने कहा कि फाल्गुन मास के आज के दिन जो जातक व्रत रखेगा उसे सांसरिक बंधंनों से मुक्ति मिल जाएगी. उन्होंने कहा आपके नेत्रों से आंवले की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसमें सभी देवी-देवताओं का वास रहेगा और पूज्यनीय होगा.

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