क्या होती है अकाल मृत्यु और भगवान विष्णु ने आत्महत्या को क्यों बताया है परमात्मा का अपमान
सनातन धर्म में वैसे तो कई सारे ग्रंथ और पुराण है जिनमें ज्ञान व मानव जीवन से जुड़ी अहम बातों का वर्णन मिलता है लेकिन गरुड़ पुराण बेहद खास होता है ये 18 महापुराणों में से एक माना गया है इसमें मानव जीवन, मृत्यु और मृत्य के बाद आत्मा के सफर के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है। गरुड़ पुराण ग्रंथ में भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ की बातचीत का वर्णन है जिसमें उन्होंने जीवन, मृत्यु, स्वर्ग नरक और मृत्यु के बाद आत्मा के बारे में बताया गया, ऐसे में अधिकतर लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि अकाल मृत्यु क्या होती है अगर आप भी इस शब्द से अब तक अनजान है तो आज हम आपको अकाल मृत्यु के बारे में विस्तार पूर्वक बता रहे है जो कि गरुड़ पुराण से लिया गया है तो आइए जानते है।
क्या होती है अकाल मृत्यु-
गरुड़ पुराण के अनुसार सिंहावलोकन अध्याय में वर्णित किया गया है कि अगर किसी की मृत्यु भूख से पीड़ित होकर, हिंसक प्राणी द्वारा, फांसी लगाकर, विष पीकर, आग में जलन, जल में डूबने, किसी विषैले जीव के काटने, किसी दुर्घटना के कारण या फिर आत्महत्या करने से होती है तो उसे अकाल मृत्यु कहा जा सकता है। गरुड़ पुराण में इन सभी प्रकार के मृत्यु में आत्महत्या को सबसे घृणित और निंदनीय अकाल मृत्यु माना गया है। अगर हम शास्त्रों की बात करें तो भगवान श्री हरि विष्णु ने आत्महत्या को परमात्मा का अपमान करने के बराबर बताया है, ऐसे में कहा गया है कि परिस्थिति कैसी भी हो मनुष्य या किसी भी जीव को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए वरना वो ईश्वर का दोष कहलाता है। ऐसा करने वाले को ईश्वर बड़ी कठोर सजा देते है।