धर्म

पौष मास में क्यों बनाई गई सूर्य पूजा की परंपरा? जानें धार्मिक और वैज्ञानिक करण

उज्जैन. पंचांग के अनुसार, हिंदू वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं। इन सभी महीनों का नाम और महत्व अलग-अलग है। हिंदू वर्ष के दसवें महीने का नाम पौष (Paush month 2022) है।

इस महीने के अंतिम यानी पूर्णिमा पर चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है, इसलिए पुष्य से प्रभावित होकर इस महीने का नाम पौष रखा गया है। इस महीने में शीत ऋतु अपने चरम पर होती है, इसलिए इस महीने में सूर्य पूजा की परंपरा बनाई गई है। आगे जानिए पौष महीने का महत्व.

पौष मास में सूर्य पूजा की परंपरा क्यों?
पौष मास में सूर्य पूजा की परंपरा है, इस परंपरा के पीछे कई वजह हैं। पौष मास में रोज सुबह जल्दी जागना चाहिए और सूर्य पूजा करनी चाहिए। साथ ही सुबह-सुबह धूप में बैठना चाहिए। इससे हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है। शीत ऋतु के कारण पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने से वह भी ठीक रहती है। इस समय सूर्य का किरणें हमारे शरीर को निरोगी बनाए रखने के लिए जरूरी होती हैं। यही कारण है कि पौष मास में सूर्य पूजा की परंपरा बनाई गई।

ये है सूर्य पूजा का ज्योतिषीय महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्य पंचदेवों में से एक हैं। इनकी पूजा करने से जीवन की कई परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य दोष हैं तो पौष मास के दौरान सूर्य पूजा करने से उसके दोष दूर हो सकते हैं। नियमित रूप से सूर्य को अर्घ्य देने से मन शांत रहता है और एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए विद्यार्थियों को खासतौर पर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।

सूर्य के इस स्वरूप की पूजा करें
पुराणों में सूर्य के 12 स्वरूप बताए गए हैं। इन सभी स्वरूपों की पूजा अलग-अलग महीनों में की जाती है। पौष मास में सूर्यदेव के भग स्वरूप की पूजा का विधान है। धर्म ग्रंथों में ये भी लिखा है कि पौष मास में सूर्यदेव 11 हजार किरणों के साथ पृथ्वी पर रह रहे लोगों को राहत पहुंचाते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है।

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