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एक देश एक चुनाव पर बात आगे बढी, बयानों का बवाल शुरू

केंद्र ने कमेटी बनाई, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अध्यक्ष होंगे

नई दिल्ली। अगर सरकार की मंशा सफल हुई तो आगामी समय में देश में लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होते नजर आएंगे। केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव पर कमेटी बना दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। जल्द इसका नोटिफिकेशन जारी हो सकता है। केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। संभावना जताई जा रही है कि इसमें एक देश एक चुनाव पर बिल भी लाया जा सकता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश-एक चुनाव को भारत की जरूरत बता चुके हैं।

क्या करेगी कमेटी
केंद्र की बनाई कमेटी एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर विचार कर आम लोगों से उनकी राय पूछेगी। कमेटी की रिपोर्ट संसद में रखी जाएगी, जिसके आधार पर आगामी निर्णय लिए जाएंगे।

क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन
वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

क्या रही नेताओं की प्रतिक्रिया

  • लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आखिर एक देश एक चुनाव की सरकार को अचानक जरूरत क्यों पड़ गई।
  • कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा- व्यक्तिगत तौर पर मैं एक देश एक चुनाव का स्वागत करता हूं। यह नया नहीं, पुराना ही आइडिया है।
  • संसदीय कार्य मंत्री, प्रह्लाद जोशी ने कहा कि अभी तो समिति बनी है, इतना घबराने की बात क्या है? समिति की रिपोर्ट आएगी, फिर पब्लिक डोमेन में चर्चा होगी। संसद में चर्चा होगी। बस समिति बनाई गई है, इसका अर्थ यह नहीं है कि यह कल से ही हो जाएगा।
  • शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने कहा कि भाजपा इंडिया से डरी हुई है। वन नेशन, वन इलेक्शन को मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लाया जा रहा है।
  • सपा नेता राम गोपाल यादव ने कहा कि संसदीय व्यवस्था की सारी मान्यताओं को यह सरकार तोड़ रही है। अगर विशेष सत्र बुलाना था तो सरकार को सभी विपक्षी पार्टियों से कम से कम अनौपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए थी। अब किसी को नहीं पता है कि एजेंडा क्या है और सत्र बुला लिया गया है।

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