सुमित शर्मा, सीहोर
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जिले के बुधनी विधानसभा में हुए उपचुनाव और उसके नतीजे सभी के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। यहां पर मुकाबला भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों के साथ ही भाजपा के ’मजबूत संगठन’ और कांग्रेस के ’बिखरे संगठन’ के बीच में था। भाजपा का मजबूत संगठन बूथ स्तर से लेकर जिला एवं राज्य स्तर तक चुनावी तैयारियों में जुटा हुआ था, तो वहीं कांग्रेस संगठन के नाम पर सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और जिलाध्यक्ष राजीव गुजराती ही थे, क्योंकि चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी घोषित जरूर हो गई, लेकिन वह भी विवादों में घिरी रही। लगातार कार्यकारिणी में शामिल किए गए नेता अपना इस्तीफा देते रहे। इधर कांग्रेस की सीहोर जिला कार्यकारिणी 8 माह के बाद भी अब तक नहीं बन पाई। कांग्रेस ने राजीव गुजराती को इसी वर्ष मार्च में अध्यक्ष नियुक्त किया था, लेकिन वे अब तक अपनी नई कार्यकारिणी की घोषणा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में भाजपा के मजबूत संगठन के आगे कांग्रेस का कोई संगठन ही नजर नहीं आया, लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा की जीत बेहद कठिनाई भरी रही। भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव के करीबी नेता जरूर चुनाव को लेकर दिन-रात जुटे रहे, लेकिन जीत का श्रेय ले रहे भाजपा संगठन एवं नेताओं की यहां पर हार ही मानी जानी चाहिए। जिस तरह से भाजपा का मजबूत संगठन चुनावी तैयारियों को लेकर जुटा हुआ था। चुनाव से पहले बूथ स्तर तक की तैयारियां एवं प्रदेश नेतृत्व द्वारा भी इन बैठकों में शामिल होकर कार्यकर्ताओं में जोश भरना सिर्फ खानापूर्ति ही नजर आया। दरअसल मध्यप्रदेश की सबसे हाई प्रोफाइल विधानसभा सीट रही बुधनी पर न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि कई अन्य राज्यों की भी नजरें टिकी हुई थीं। बुधनी विधानसभा सीट से शिवराज सिंह चौहान लगातार जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी को संभालते रहे हैं। ऐसे में यह सीट सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में से एक मानी जाती रही है। इस सीट से शिवराज सिंह चौहान जितनी लीड लेकर जीतते रहे हैं उतने तो भाजपा उपचुनाव में सिर्फ वोट ही बटोर पाई। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बुधनी से एक लाख 4 हजार की लीड ली थी तो वहीं लोकसभा चुनाव-2024 में बुधनी विधानसभा से करीब डेढ़ लाख वोटों की लीड मिली थी। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव की कुल 13901 वोटों से जीत भाजपा के मजबूत संगठन पर सवाल खड़ा करती है। जिस तरह से भाजपा ने यहां के लिए रणनीति बनाई थी या तो वह रणनीति काम नहीं आई या फिर भाजपा का मजबूत संगठन यहां पर फेल साबित हुआ। चुनाव नतीजों के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी रहे रमाकांत भार्गव की 13901 वोटों से जीत के बाद इस जीत का श्रेय लेने में कई नेता लगे हुए हैं। हालांकि इन नेताओं के क्षेत्र एवं इनके स्थानीय मतदान केंद्रों पर नजरें दौड़ाई जाए तो स्थिति साफ नजर आती है। इस बार सीहोर भाजपा एवं बुधनी विधानसभा क्षेत्र के कई बड़े नेताओं के स्थानीय मतदान केंद्रों पर ही भाजपा की हार हुई है। यह स्थिति लगभग ज्यादातर मतदान केंद्रों पर रही। उपचुनाव नतीजों से साफ जाहिर है कि बुधनी विधानसभा के नेताओं की गुटबाजी एवं आपसी खींचतान जिस तरह से रही है उसने मतदान के नतीजों को काफी हद तक प्रभावित किया है। यदि नेताओं की आपसी गुटबाजी एवं खींचतान नहीं होती तो बुधनी उपचुनाव के नतीजे कुछ और होते। भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव ने जीत जरूर दर्ज कराई है, लेकिन एक लाख 4 हजार की लीड मात्र 13901 वोटों की रह गई है। इससे यह तो पता लगता है कि भाजपा का मजबूत संगठन यहां पर हारा है और रमाकांत भार्गव के करीबी नेताओं, कार्यकर्ताओं ने जरूर उन्हें चुनाव जिताने के लिए पूरा जोर लगाया। अब भाजपा संगठन एवं नेताओं को इस ’श्रेय की राजनीति’ से ऊपर उठकर ’चिंतन’, ’चिंता’ एवं ’फिल्टर’ लगाने पर भी विचार करना चाहिए।
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