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शिव का अर्थ ही कल्याण है : कान्हा जी महाराज

आंवलीघाट नर्मदा तट स्थित गुरुदेव दत्त कुटी तीर्थ क्षेत्र में शुरू हुई श्री शिवमहापुराण, 4 दिसंबर को पूर्णाहुति

रेहटी। सीहोर जिले के प्रसिद्ध नर्मदा तट आंवलीघाट स्थित गुरुदेव दत्त कुटी तीर्थ क्षेत्र उत्तर तट पर प्रसिद्ध संत महंत स्वामी जमनागिरी जी महाराज के मार्गदर्शन में श्री शिव महापुराण कथा का शुभारंभ हुआ। कथा का श्रवण प्रसिद्ध कथावाचक अर्जुनराम शास्त्री कान्हा जी महाराज द्वारा कराया जा रहा है। इससे पहले कथा शुभारंभ अवसर पर मां नर्मदा, गुरुदेव दत्त भगवान की पूजा-अर्चना सहित संपूर्ण देवी-देवताओं के आवाहन के साथ कलश यात्रा निकाली गई। इसके बाद व्यास पीठ से वृंदावन धाम से पधारे राष्ट्रीय धर्माचार्य कान्हा जी महाराज ने कहा कि शिव का अर्थ ही कल्याण है। ये कथा मनुष्य के जीवन के पुरुषार्थ चतुष्टय को सिद्ध करने वाली है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्रदान करने वाली है यह कथा मनुष्य को शिवजी चित, मन, विचार, सोच और बुद्धि में उनकी शरणागति ग्रहण कराती है। शिव ही मात्र तुम्हारी तकदीर को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। वह कोई और नहीं हो सकता, वह केवल देवो के देव महादेव ही हो सकते हैं। कथा प्रवक्ता कान्हा जी महाराज ने कहा कि जो शिव की आराधना करने वाला है, जो शिव तत्व में डूबने वाला है और जो भगवान शिव की शरणागति को दृढ़ करने वाला है, वह संसार सागर में कभी डूबता नहीं है।
शिव कथा सुनने का अवसर जन्मों के पुण्य के बाद मिलता है
कान्हा जी महाराज ने व्यास पीठ से कहा कि शिव महापुराण की कथा मनुष्य के अनंत जन्मों के पुण्य के अभ्युदय के बाद श्रवण करने को प्राप्त होती है। शिव महापुराण की दिव्य कथा कलयुग में कल्पतरु के समान है। महादेव या उनकी कथा की शरण में आने के बाद पाप, ताप, संताप सभी नष्ट हो जाते हैं। कथावाचक कान्हा जी महाराज ने बताया कि संपूर्ण सृष्टि में शिवलिंग की उत्पत्ति प्रथम बार महाशिवरात्रि को हुई। शिवलिंग उत्पत्ति का कारण भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच बहस पर हुई। उनमें इस बात पर बहस छिड़ गई कि उन दोनों में से कौन श्रेष्ठ है। जब विवाद चरम पर पहुंच गया तो अचानक एक विशाल, तेजस्वी अग्नि स्तंभ (शिवलिंग) प्रकट हुआ। आकाशवाणी हुई कि जो भी इस स्तंभ का अंत या आदि ढूंढ लेगा, वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने स्तंभ का अंत खोजने के लिए पृथ्वी पर यात्रा की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। अंत में भगवान शिव प्रकट हुए और बताया कि यह शिवलिंग उनका ही एक रूप है, जिसका न कोई अंत है और न ही कोई न कोई मध्य न आरम्भ, क्योंकि शिव ही तो अनंत है। तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा दोनों ने शिवजी की शरण ग्रहण की। शिव पुराण की अपार महिमा है और इसके पाठ या श्रवण से कई लाभ मिलते हैं। मनोकामनाओं की पूर्ति, कष्टों का निवारण और पापों का नाश होता है। इसके अतिरिक्त यह निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति, वैवाहिक जीवन में सुधार और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माना जाता है। शिव पुराण को पढ़ने या सुनने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार में प्रेम बढ़ता है। कथा के प्रेरणास्रोत स्वामी जमनागिरी जी महाराज ने संपूर्ण क्षेत्रवासियों एवं ग्रामवासियों को इस कथा में पधारकर धर्म लाभ प्राप्त करने की अपील की है। कान्हा जी महाराज के साथ आचार्य सुधीर शास्त्री, लोकेश मिश्रा, संगीत में योगेंद्र बैरागी, आदर्श एवं सचिन सेन भजनों के गायन में साथ दे रहे हैं। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तजन पहुंच रहे हैं।

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