‘टाइटैनिक’ ने अपने 25 साल कर लिए पूरे
सबसे चर्चित फिल्मों में से एक 'टाइटैनिक' ने अपने 25 साल पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर फिल्म से जुड़ी कई बातें सामने आई हैं। ‘टाइटैनिक हिस्टोरिकल सोसाइटी (THS)’ की एक इतिहासकार डॉन लिंच ने टाइटैनिक के डूबने पर उस वक्त की सबसे सनसनीखेज बात बताई थी। उन्होंने वो वक्त याद किया, जब पहली बार उन्होंने 1975 में रूथ बेकर ब्लैंचर्ड के बारे में सुना। रूथ 12 साल की थीं, जब वह 14 अप्रैल, 1912 को टाइटैनिक के डूबने से बच गई थीं। वह 90 साल की थीं जब उनकी मौत हो गई। लिंच का कहना है कि रूथ का इंडिया से एक गहरा रिश्ता था। वह भारत में पैदा हुईं और पली-बढ़ीं। डॉन ने कहा, ‘जहाज को अच्छी तरह से याद रखने वाला आखिरी टाइटैनिक पर बचा इंसान भारत से ही कोई था। रूथ एक अमेरिकी थीं, लेकिन वह भारत में पली-बढ़ी थीं। वह शुरू से अंत तक उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन की कहानी बता सकती थीं। वो हमें शिप के डूबने की एक अद्भुत डिटेलिंग दे सकती थीं।’
टाइटैनिक में रूथ के डायलॉग्स
रूथ की कुछ यादें जेम्स कैमरून की फिल्म ‘टाइटैनिक’ में डायलॉग बन गईं, जिसे फिल्म में ग्लोरिया स्टीवर्ट ने बोला था। एक सीन में, जब रोज जहाज के खंडहरों को देखती हैं, तो उन्हें जहाज की यादें ताजा हो जाती हैं। सीन में वह अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहती हैं, ‘84 साल हो गए हैं और मैं अभी भी ताजा पेंट को सूंघ सकती हूं। चीन का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया था। बिस्तरों में कभी सोया नहीं गया था।’ ऑनलाइन टीएचएस की एक मैगजीन ‘द टाइटैनिक कम्यूटेटर’ के 1990 के एक रूथ पर लिखे आर्टिकल में डॉन ने बताया था कि कैसे हर चीज का नयापन उनके लिए जहाज का सबसे बड़ा पहलू था।
रूथ और डॉन की मुलाकात
डॉन पहली बार 1982 में रूथ से मिलीं, वह 82 साल की थीं। अपने लॉस एंजिल्स के घर में उस यादगार मुलाकात में डॉन को भारत में रूथ के खूबसूरत बचपन के बारे में पता चला। टाइटैनिक डूबने के समय सबसे कम उम्र के इंसान के रूप में, रूथ ने 1913 में एक अमेरिकी बच्चों की मैगजीन में अपनी आपबीती सुनाई थी। उसके बाद, वह लगभग 70 वर्षों तक चुप रहीं। अस्सी के दशक में जब वह फिर से इस बारे में बात करने लगीं और जब डॉन उनसे मिलीं, तब उनके बच्चों को भी बैकस्टोरी का पता चला। 1990 के दशक में, डॉन को कैमरून ने काम पर रखा था क्योंकि वह फिल्म की शूटिंग के लिए तैयार थीं। वह उस पहली टीम का हिस्सा थीं जिसने अटलांटिक में मलबे में गोता लगाया था।
रूथ को याद थी टाइटैनिक की हर तबाही
डॉन कहती हैं, ‘जब वह मरी थीं, तब रूथ 90 साल की थीं। उस समय कई लोग जिंदा बचे थे जो उससे बड़े थे लेकिन वे एक अच्छी कहानी नहीं बता रहे थे। वे एक टूटे हुए रिकॉर्ड की तरह थे जो उसी बात को दोहरा रहे थे।’ डॉन 1974 में THS में शामिल हुईं और अपने हाई स्कूल के बाद से जहाजों के मलबे के लिए खोज पर निकल पड़ीं। वाल्टर लॉर्ड की 1955 की क्लासिक ‘ए नाइट टू रिमेंबर’, जो टाइटैनिक के अंतिम घंटों के बारे में कुछ बताती है, डॉन के लिए एक खास मोड़ साबित हुई। वह टाइटैनिक के लिए दीवानी सी हो गईं।
टाइटैनिक की वो अजीब दास्तां
THS को 1963 में एडवर्ड कामुडा, इतिहासकार और टाइटैनिक रिसर्चर्स ने बनाया था। उन सभी ने अपने रिसर्च में उस बर्बाद जहाज पर सवार लोगों की कहानियों को जानने के लिए जी जान लगा दी थी। डॉन इतिहास की सबसे बड़ी समुद्री आपदाओं में से एक में अपने स्किल के कारण THS में शामिल हो गईं। वह अब THS की इतिहासकार हैं और टाइटैनिक के विद्वानों और दुनिया भर के लोगों के लिए एक अमूल्य सच ‘द टाइटैनिक कम्यूटेटर’ को बाहर लाने में सबसे अहम हिस्सा हैं।
रूथ का भारत से रिश्ता
डॉन के अनुसार, रूथ के पिता एलन ओलिवर बेकर ने भारत में एक मिशनरी के रूप में सेवा की। नेली ई. बॉमगार्डनर से शादी करने के बाद बेकर्स 1898 में भारत के लिए रवाना हुए और उसी साल दिसंबर में गुंटूर में उतरे। वे गुंटूर से लगभग 45 किमी नरसरोपेट में बस गए। रूथ का जन्म 1899 में हुआ था। कथित तौर पर वो गुंटूर में पैदा होने वाली पहली कोकेशियान बच्ची थीं। उन्होंने कोडाईकनाल के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई की। 1907 में उनके भाई लूथर की टिटनेस के कारण मौत हो गई। उनके भाई-बहन, मैरियन और रिचर्ड भी भारत में पैदा हुए थे।
बच्चा खोने के डर से देश छोड़ा
बेकर्स भारत की कठोर जलवायु को नहीं अपना सके। नेल्ली को डर था कि वह एक और बच्चा खो सकती हैं, इसलिए वह देश छोड़ना चाहती थीं। 7 मार्च, 1912 को नेल्ली और बच्चे मद्रास से लंदन चले गए। उनकी जर्नी लगभग एक महीने तक चली और 10 अप्रैल को वे साउथेम्प्टन के लिए एक ट्रेन में सवार हुए और अंत में 12 अप्रैल को टाइटैनिक में सवार हो गए। आगे डॉन ने बताया, ‘उन्होंने टाइटैनिक को सिर्फ इसलिए लिया क्योंकि उन्हें अमेरिका जाना था। पहली जर्नी होने की वजह से इसका कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने बस अगली जहाज ली और यह टाइटैनिक था।’
और ऐसे रूथ कभी इंडिया नहीं लौटीं…
डॉन ने रूथ को याद करते हुए बताया कि कैसे वह अपने साथ के लोगों से बात नहीं कर सकती थीं क्योंकि उनकी अंग्रेजी तेलुगू से बहुत मिलती-जुलती थी। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उनकी मां ने जहाज में जाने से पहले अपने कोट में 100 डॉलर का बिल सिल दिया था और उनके ज्यादातर साथी मर गए थे। बेकर्स डूबने से बच गए, लेकिन उनमें से कोई भी फ