भोपाल/जबलपुर। प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियोें में जुटे उम्मीदवार अब भी असमंजस में हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव को लेकर कहा है कि इन चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू न किया जाए। वहीं निर्देश को न मानने पर पंचायत चुनाव रद भी किए जा सकते हैं। इधर सरकार के अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने दलील दी है कि चुनावों की घोषणा के बाद कोर्ट कोे अधिकार नहीं है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें।
इससे पहले मप्र हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश में होने जा रहे पंचायत चुनाव अंतर्गत परिसीमन और आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई, अर्जेंट हियरिंग से इन्कार कर दिया। गुरूवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले पर शीघ्र सुनवाई का निवेदन किया गया। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व जस्टिस विजय शुक्ला की युगलपीठ ने साफ कर दिया कि शीतकालीन अवकाश के बाद मामले पर अगली सुनवाई की जाएगी, जबकि दमोह निवासी डॉ. जया ठाकुर द्वारा अधिवक्ता वरुण ठाकुर के माध्यम से गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए दायर की गई अन्य याचिका पर सुनवाई की अगली तिथि शीतकालीन अवकाश से पूर्व 21 दिसंबर निर्धारित कर दी गई थी।
इस याचिका के जरिये मध्यप्रदेश शासन पर मनमाने तरीके से पंचायत चुनाव संपन्न कराने की कोशिश का आरोप लगाया गया है। साथ ही कहा गया है कि राज्य सरकार ने जानबूझकर संवैधानिक त्रुटियां की हैं, जिससे पंचायत चुनाव मामला सुलझने के बजाए और उलझता जा रहा है। पंचायत चुनाव के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एक मामले में दो कोर्ट को शामिल नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता अपना पक्ष हाईकोर्ट में ही रखें।
उल्लेखनीय है कि नौ दिसंबर को हाईकोर्ट ने मामले पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और सरकार के अध्यादेश पर स्थगन नहीं दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 243 (ओ) में निहित प्रविधान के तहत चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाने के बाद अदालत को उसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं रहता।
हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ भी कर चुकी मना-
इसके पहले सात दिसंबर, 2021 को ग्वालियर खंडपीठ ने भी अंतरिम राहत का आवेदन निरस्त कर दिया था, इसलिए ऐसी स्थिति में राहत नहीं दी जा सकती। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने अब सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। कोर्ट ने इस मामले में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव, पंचायत राज संचालनालय के आयुक्त सह संचालक एवं राज्य चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
21 नवंबर 2021 को राज्य सरकार ने अध्यादेश जारी कर आगामी पंचायत चुनाव में 2014 के आरक्षण रोस्टर और परिसीमन के आधार पर चुनाव कराए जाने की घोषणा की है। इसके बाद राज्य सूचना आयोग ने पंचायत चुनाव के लिए चार दिसंबर, 2021 को अधिसूचना जारी कर दी। प्रदेश में पंचायत चुनाव के पहले चरण में छह जनवरी को मतदान होगा। एक दर्जन से अधिक याचिकाओं में उक्त अध्यादेश व अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा, अधिवक्ता महेन्द्र पटेरिया ने दलील दी कि पुराने रोस्टर और परिसीमन के तहत चुनाव कराना संविधान की मंशा के विपरीत है। संविधान के अनुच्छेद (डी) के अनुसार कार्यकाल समाप्त होने के बाद आरक्षण रोस्टर बदलना जरूरी है। जिला, जनपद और ग्राम पंचायतों के उम्मीदवारों ने नए रोस्टर के तहत इसकी तैयारी कर ली थी। अब पुराने रोस्टर से चुनाव कराने से सभी समीकरण बदलने होंगे।
नहीं है हस्तक्षेप का अधिकार-
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 243 (ओ) के अनुसार चुनाव की घोषणा के बाद कोर्ट को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। कार्यकाल मार्च 2020 में पूरा हो चुका है। कोविड के कारण चुनाव में देरी हो चुकी है, तैयारी पूरी हो गई है और वोटर लिस्ट तैयार है। अब चुनाव टलेगा तो नए सिरे से वोटर लिस्ट व अन्य प्रक्रिया करनी होगी, जिससे पूरा चुनाव प्रभावित होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता शशांक शेखर ने बताया कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पंचायत चुनाव मामले में शीघ्र सुनवाई की मांग नामंजूर किए जाने को गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है। इस पर शुक्रवार को सुनवाई निर्धारित की गई थी।