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मौद्रिक नीति का ऐलान, रेपो रेट 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ा

नई दिल्ली
 
रिजर्व बैंक ने आज अपनी मौद्रिक नीति के ऐलान से पहले आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने ग्लोबल महंगाई पर चिंता व्यक्त की। इसके बाद उन्होंने रेपो रेट को 0.50 फीसद बढ़ाने का ऐलान किया। रेपो रेट अब 4.90 से बढ़कर 5.40 फीसद पर पहुंच गया है। दास ने यह भी कहा कि समिति ने सर्व सम्मति से यह फैसला लिया है।

आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए चालू वित्त वर्ष में अब तक रेपो दर को दो बार बढ़ाया गया था-मई में 0.40 प्रतिशत और जून में 0.50 प्रतिशत। यह तीसरी बार है, जब रेपो रेट बढ़ाया गया है। इससे पहले रेपो रेट 4.9 प्रतिशत था, जो कोविड-पूर्व के स्तर 5.15 प्रतिशत से नीचे था। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आर्थिक नीतियों की समीक्षा के दौरान हर बार रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर जैसे शब्द आते हैं, जिन्हें आम आदमी के लिए समझना थोड़ा मुश्किल होता है। आइए आसान भाषा में जानें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर का मतलब और इससे आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है..

इसे आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट से आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव
जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।

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