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हर्षवर्धन को स्टार बनाने की एक और कोशिश, थार की दृश्यावलियों में खो गई

फिल्म थार अपने जमाने के सुपरस्टार रहे अभिनेता अनिल कपूर ने अपने बेटे हर्ष वर्धन कपूर को स्टार बनाने के लिए बनाई है। नेटफ्लिक्स की बलिहारी है कि हर महीने 499 रुपये का बिल फाड़ने के बाद वह ऐसी फिल्में परोसता जा रहा है। इस ओटीटी पर दिल खुश कर देने वाली आखिरी हिंदी फिल्म या वेब सीरीज अब तक द फेम गेम ही रही है। फिल्म थार जैसा कि नाम से जाहिर है राजस्थान के मरुस्थल थार की पृष्ठभूमि पर बनी है। एक पुलिस इंस्पेक्टर है जो बालिका वधू में दादी सा बनी सुरेखा सीकरी की याद दिलाने के लिए ही शायद अपना नाम सुरेखा रखता है। आवाज उसकी कहानी का सिरा सन 47 से क्यों पकड़ती है, वह ही जाने क्योंकि किस्सा ये सन 85 का है। गांव में कत्ल हो रहे हैं। वह इनके सबूतों के हिसाब से अपराधी कम तलाशता है, भविष्यवाणियां ज्यादा करता है। पन्ना, धन्ना की तलाश में भटकता एक और छोरा है जिसकी निगाहें पुरानी चीजों पर कम और दूसरों की लुगाइयों पर ज्यादा टिकती हैं। कहानी इन्हीं सब दृश्यावलियों में कहीं भटककर रह जाती है। नेटफ्लिक्स की नई फिल्म थार का डीएनए इसे बनाने वाले राज सिंह चौधरी के संघर्ष जैसा है। वह अनुराग कश्यप स्कूल से निकले फिल्ममेकर हैं।  सत्या के दिनों में अनुराग से प्रभावित हुए। मॉडलिंग के बाद कारोबारी बने और फिर सिनेमा बनाने मुंबई आ पहुंचे। कहते हैं कि फिल्म गुलाल की असल कहानी उन्हीं की लिखी हुई थी। राज सिंह चौधरी पर अनिल कपूर जैसे कलाकार ने अपने बेटे का करियर सेट करने के लिए भरोसा किया तो उनमें कुछ तो खास बात जरूर होगी। हालांकि, ये खास बात फिल्म थार देखने से साफ हो जाती है। राज सिंह चौधरी दृश्यावलियों की कल्पना करने वाले निर्देशक हैं। कहानी उनकी फिल्ममेकिंग की प्राथमिकता में कहीं बाद में आती है। डेविड अटनबरो की किसी डॉक्यूमेंट्री की तरह शुरू होने वाली फिल्म थार में चील और मुर्रा भैंस वाले सीन ही वाकई में अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहे हैं।

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