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ये अमित नहीं अमिट…

मौत को ठेंगा दिखाया भोपाल के अमित शर्मा ने, झीलों की नगरी में कोरोना का सबसे लंबा इलाज इस समाजसेवी का

ऋषभ तिवारी (विवान) की कलम से
जाको राखे साइयां मार सके न कोए… इसका अर्थ तो आपको पता ही होगा। मगर एक बार फिर से दोहराया जाए तो अर्थ ये निकलता है कि जिसके साथ ईश्वर होता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जहां एक और कोरोना कि तीसरी लहर देश के कई राज्यों में कहर बरपाने लगी है तो वहीं दूसरी ओर बीते 2 वर्षों में कोरोना की लहरों से जुड़ी कई ऐसी भी यादें, कहानियां और किस्से हैं जिन्हें सुन दिल दहल जाएगा और यह सोचने पर आप मजबूर भी हो जाएंगे कि क्या सचमुच में ऐसा भी हो सकता है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तुलसी नगर नाम की एक जगह है। इस जगह की बागडोर पार्षद के रूप में एक ऐसे व्यक्ति को बीते कई वर्षों से मिल रही है जिसने मौत को भी चकमा देकर घर वापसी कर ली और ऐसा तब मुमकिन हो पाया जब उनके लिए ना जाने कितने ही अनजान लोगों ने सुबह शाम लगातार भगवान से दुआएं की। यह व्यक्ति लगातार 140 दिनों तक कोरोना से लड़ता रहा और एक वक्त ऐसा आया कि उसने कोरोनावायरस को ठेंगा दिखाते हुए अंततः घर वापसी कर ली और उन सभी के चेहरों में खुशियों की सौगात दे दी जो इस व्यक्ति के जीवित रहने के लिए सुबह-शाम मिन्नतें कर रहे थे। इनके क्षेत्र के लोग ऐसा कहा करते हैं की तुलसी नगर का कोई भी व्यक्ति इनके होते हुए कभी भूखा नहीं सोया है। ना कभी किसी को कोई दर्द हो सकता है ना कोई दूसरी समस्या। फलस्वरूप 97ः तक फेफड़ो में कोरोना ने अपनी एकाधिकार कर रखा था हालात बिल्कुल खराब थी मगर बावजूद इसके मौत के मुंह से वो सकुशल वापस लौट गए।
ऐसे अद्भुत और ऐतिहासिक जीवनदान पाने वाले इस व्यक्ति का नाम है ष्अमित शर्माष्। ये राजधानी भोपाल के वार्ड क्रमांक 31 के कांग्रेस पार्टी से पार्षद रह चुके हैं। इन्हें राजधानी के एक कद्दावर नेता और इन सबसे परे एक भावी समाज सेवी के रूप में जीता-जागता उदाहरण माना जाता है।
3 महीने तक अन्न का एक दाना नहीं खाया, वजन 78 से 42, पहली बार वेज सुप उतरा गले से नीचे।
दूसरी लहर के दौरान लोगों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था करवाते और लॉकडाउन के दौरान हो रही लोगों के समस्याओं का समाधान करते-करते अमित खुद संक्रमित हो गए। चार से पांच दिन भोपाल में उनका इलाज चला, मगर उनकी हालत और ज्यादा गंभीर हो गई। कारण ये था कि फेफड़ों में 97 प्रतिशत तक संक्रमण ने घर कर लिया था। ऐसी परिस्थिति में उनके लिए अंजनी पुत्र बनकर आई उनकी साली यानी कि उनकी पत्नी की छोटी बहन डॉ मेघा दुबे। मेघा ने उस समय की विकट परिस्थितियों में भी अपने जीजाजी से यह कहा कि वह हिम्मत रखें उन्हें कुछ भी नहीं होगा और यही कहते-कहते उन्हें एअरलिफ्ट कर हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल में डॉ. हरीकृष्ण के पास भेज दिया गया। यहां हुई असल जंग की शुरुआत।
अमित बताते हैं कि उनका इलाज इस तरीके से हो रहा था मानो कोई काम युद्ध स्तर पर हो रहा हो। अस्पताल प्रबंधन और डॉ. हरीकृष्ण पूरी ताकत से उनके इलाज में कोरोना के उस भयावह वक्त में लगे हुए थे। 3 महीनों तक उन्हें कुछ भी खाने-पीने को नहीं दिया गया। सिर्फ विटामिन के इंजेक्शन से उनकी खाना पूर्ति की गई। स्थिति यह हुई कि 78 किलो से 42 किलो वजन हो गया। जब पहली बार उन्हें वेज सूप दिया गया तो उनके लिए वह मानो कुछ ऐसा था जैसे अमृत। हालांकि वह बताते हैं कि इतने दिनों तक कुछ भी नहीं खाने की वजह से वे खाने-पीने की चीजों का जायका तक भूल चुके थे।
नम आंखों से बताया कि उनकी छोटी सी बिटिया ने उनमें हिम्मत बनाए रखी… जब यह सवाल अमित शर्मा से किया गया कि आखिरकार आप एक इतने बड़े युद्ध को जीतकर अब सबके सामने बिल्कुल भले-चंगे खड़े हैं अब कैसा लगता है आपको। उन्होंने नम आंखों से अपनी छोटी सी बिटिया को इसका श्रेय दिया और यह कहा कि मुझे बार-बार सिर्फ उसकी याद आती थी कि वो अभी बहुत छोटी है और मुझे सिर्फ उसके लिए जिंदा रहना है। इस मार्मिक श्रेय पर बात करते हुए उनकी आंखों में उस वक्त आंसू भी आ गए। उन्हें उनकी नन्ही-मुन्नी बिटिया की उस वक्त की हल्की तोतलाहत वाली प्यारी बातें लगातार याद आ रही थी।
अमित का भोपाल से हैदराबाद आना मेरे लिए एक चौलेंज था: डॉ. हरिकृष्ण
विश्वविख्यात फेफड़े और श्वसन संबंधी रोगों के विशेषज्ञ डॉ. हरिकृष्ण गोनुगुंतला जिन्होंने हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल में भोपाल के अमित शर्मा का लगातार दो से तीन महीनों तक इलाज किया। उन्होंने बताया कि जिस स्थिति में एअरलिफ्ट कर अमित को हैदराबाद लाया गया था वो बहुत ही गंभीर स्थिति में थे। उनका वहां से मेरे अस्पताल में आना मेरे लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज था। बेशक हमारी ये जिम्मेदारी बनती थी कि हम पूरी ताकत से उनके इलाज में जुट जाएं। मैंने और मेरी पूरी टीम ने अमित के इलाज में पूरी ताकत लगा दी। हालांकि हमने तो अपना सौ प्रतिशत दिया ही मगर उनके स्वस्थ होने के पीछे एक राज और भी है और वह यह था कि लगातार उनका परिवार भी उनकी हौसलाअफजाई में लगा रहता। यहां तक कि भोपाल और देशभर के कई जगहों से हमारे पास फोनकॉल्स आते थे कि हमें अमित को कैसे भी बचाना है। इतने लोगों की आशाओं और निवेदन को देखते हुए मैं खुद भी दंग था और सिर्फ इसी कोशिश में था कि मैं जल्द से जल्द इन्हें स्वस्थ कर सकूं। एक दफे तो लगा कि हमें उनके फेफड़ों को बदलना होगा और उसकी पूरी तैयारी भी कर ली गई, मगर उनके फेफड़ों को बिना बदले ही हमने उन्हें ठीक कर लिया और अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गए हैं। मेरे 10 वर्ष के अनुभव में अमित का पूरी तरह से स्वस्थ हो जाना पहला ऐसा सफल इलाज है। ये बिल्कुल अलग था, मुझे तब बहुत खुशी होती है जब उनकी वीडियो मेरे पास आती है और मैं देखता हूं कि अब वह पहले की तरह लगातार लोगों की सेवा में जुटे चुके हैं।
ऐसे गंभीर हालत में मरीज को बचा पाने का श्रेय अस्पताल प्रबंधन और डॉ की सुझबुझ को जाता है: डॉ लोकेंद्र दवे
कोरोना के मध्यप्रदेश सलाहकार और राज्य के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ लोकेंद्र दवे का इस सफल इलाज पर यह कहना है कि 97 प्रतिशत फेफड़ों में संक्रमण के बाद किसी मरीज को पूरी तरह से स्वस्थ कर पाना तभी संभव है, जब पूरी ताकत से अस्पताल प्रबंधन, नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर अपनी पूरी सूझबूझ से चौबीसों घंटे मरीज का ध्यान रख सकेंगे। फेफड़ों में कोरोना के दौरान होने वाले संक्रमण पर बात करते हुए उन्होंने यह कहा कि सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात ये होती है कि ऑक्सीजन कब और कितना देना है। ऑक्सीजन कब खत्म हो रही है इसका पूरा ध्यान रखना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। अमित शर्मा के पूरी तरह से स्वस्थ होने पर उन्होंने इसका पूरा श्रेय हैदराबाद के उस अस्पताल और डॉक्टर को दिया जिन्होंने पूरी गंभीरता से अमित का इलाज किया। राज्यभर के लोगों को कोरोना के राज्य सलाहकार डॉ लोकेंद्र दवे ने आगामी तीसरी लहर के लिए यह सलाह दी है कि इस लहर में बचने का सिर्फ एक ही मूल मंत्र है कि आपको वैक्सीन के दोनों डोज़ लगे हो इसके साथ ही विटामिन सी और डी को भरपूर मात्रा में भी आप लगातार लेते रहे।

मास्क ही सबसे बड़ा हथियार कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए: अमित शर्मा
कोरोना के भयानक प्रकोप को झेलकर वापस आने वाले अमित शर्मा का आगामी तीसरी लहर में कोरोना से बचाव के लिए देशभर के लोगों को यह कहना है कि अगर संक्रमण से बचना है तो उसका सबसे बड़ा हथियार एकमात्र मास्क है। इसलिए हर हाल में मास्क लगाना बहुत ज्यादा जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई संक्रमित हो जाता है तो ऐसी स्थिति में उसका स्वस्थ होना तब संभव होगा जब वह लगातार हिम्मत बांधे रखेगा। व्यक्ति का आत्मविश्वास ही उसके लिए सबसे बड़ी संजीवनी बूटी साबित होगा।

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