नर्मदा घाटी में बड़े घोटाले, भष्ट अफसरों को बचा रही सरकार

( अमिताभ पाण्डेय )
भोपाल ( अपनी खबर )
नर्मदा घाटी परियोजना अंतर्गत सरदार सरोवर बांध में एक महा घोटाला हुआ है। इसमें 1600 गरीब किसानों की फर्जी रजिस्ट्री करवाकर करोड़ों रूपयों का भ्रष्टाचार अधिकारियों, कर्मचारियों और दलालों ने किया है। मध्यप्रदेश सरकार घोटाले करने वालों को सजा देने की बजाय संरक्षण दे रही है। इस मामले में अदालत के आदेश का भी पालन नहीं किया जा रहा है। उक्त आशय के आरोप सांसद दिग्विजय सिंह और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर ने लगाए हैं।
उन्होंने आज पत्रकार वार्ता में कहा कि वर्ष 2005 से डूब प्रभावित किसानों को वैकल्पिक खेती लायक जमीन नर्मदा ट्रिब्यूनल और पुनर्वास नीति तथा सर्वोच्च अदालत के फैसलों के आधार पर दी जानी थी। जमीन नही दे पाने पर 5 एकड़ सिंचित जमीन खरीदने के लिये 5.58 लाख रूपये का अनुदान घोषित हुआ तो उसमे सैकड़ों फर्जी रजिस्ट्रियां पेश करके राशि निकाली जाने लगी। पुनर्वास के अन्य कार्यो में जैसे मकान के लिये भू-खण्डों का आवंटन जिसमें कई पुनर्वास स्थलों पर परिवर्तन होने लगा और पूनर्वास बसाहटों पर हो रहे सुविधाओं के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार सामने आने लगा। तब 2007 में नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से म.प्र. उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई। मुख्य न्यायाधीश ने 21 अगस्त 2008 के आदेश से न्यायाधीश श्रवणशंकर झा की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार जांच आयोग गठित किया।
इस आयोग के समक्ष चार मुद्दों पर चले कार्य में भ्रष्टाचार की जांच सम्मिलित रही, जिस पर 7 साल के कार्यकाल में हजारों लोगों से सुनवाई की। स्थल निरीक्षण तथा बड़े पैमाने पर कागजातों की खोज के साथ, याचिकाकर्ता तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की गवाही प्रस्तुत की गई। माह जनवरी, वर्ष 2016 में प्रस्तुत हुए झा आयोग की रिपोर्ट में सभी मुद्दों पर जांच में यह निष्कर्ष निकलकर आया कि भारी भ्रष्टाचार और बहुत अधिक अनियमितताएं हुई है।
इस रिपोर्ट पर म.प्र. शासन ने उच्च न्यायालय में सुनवाई एवं कार्यवाही का विरोध किया। सर्वोच्च अदालत नेे जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत उच्च न्यायालय को 900 से अधिक पन्नों की रिपोर्ट और संलग्नक कागजातों को विधान मंडल के समक्ष रखने पर मजबूर किया। जुलाई 2016 से यह रिपोर्ट विधान मंडल के पटल पर रखी गई। न कभी इस पर बहस हुई। न कोई कार्यवाही की रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश की गई।
सर्वोच्च अदालत ने मुद्दों पर राज्य शासन से कार्यवाही की अपेक्षा की थी। वह आज तक पूरी नहीं की गई है। मात्र एक आदेश दिनांक 5 अगस्त 2016 को निकालकर संभागीय आयुक्त, इन्दौर को फर्जी रजिस्ट्रियों के संबंध में कार्यवाही सौंप दी। आयोग ने पुनर्वास स्थल पर एम.पी.ई.बी. के द्वारा विद्युत ट्रांसफार्मर्स रखे जाने में भी करोड़ों रूपयें का भ्रष्टाचार किया था, इसकी जांच भी एम.पी.ई.बी. के दोषी अधिकारियों को ही सौंपी गई है। राज्य शासन ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने आज तक दलालों और भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही किये जाने की कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी है। सभी दलाल आज भी वहां दलाली कर रहे है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के द्वारा संघर्ष करते हुए हजारों परिवारों को मुआवजा दिलाने का कार्य किया गया है लेकिन राज्य सरकार सैकड़ों परिवारों के साथ धोखाधड़ी करने वाले दलालों और भ्रष्टाचार करने वाले कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नही कर रही है। यह आपराधिक कृत्य सरकार ने लंबित कर रखा है।
पूर्व मुख्यमंत्री श्री सिंह और नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता मेघा पाटकर ने आरोप लगाया कि गंभीर गड़बड़ी करने वालों के विरुद्ध म.प्र. शासन द्वारा कार्यवाही नही करके भ्रष्टाचार को शह दी गई है। सरदार सरोवर जैसे राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवादित, विश्व बैंक से विनाशकारी बनाये गये और फंड रोक दिये। उन्होंने सवाल किया कि इतनी बड़ी परियोजना के संबंध में हुए भारी घोटाले को राज्य सरकार 7 साल की जांच रिपोर्ट के बावजूद क्यों दबा रही है? विधान मंडल से लेकर संसद तक यह घोटाला उजागर होना चाहिये। इस मामले में जनप्रतिनिधियों के अलावा विस्थापित ही नही, प्रदेश और देश की जनता के समक्ष भी राज्य सरकार को जवाब देना होगा।
जवाब के साथ ही यदि हर दोषी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की गई तो म.प्र. की सरकार को ही दोषी माना जायेगा जो गरीब किसानों मजदूरों को न्याय दिलाने की जगह भ्रष्टाचार करके उनका हक डकारने वालों को बचा रही है।