भोपालमध्य प्रदेश

मप्र में कमजोर हो गए हैं भाजपा के कंधे

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के मोर्चे उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन मोर्चे कमजोर दिखाई पड़ रहे हैं। चुनावी साल होने के बावजूद भी किसी भी मोर्चे का कोई बड़ा कार्यक्रम तय नहीं है। ज्यादातर मोर्चे सिर्फ बैठकें करने और बड़े नेताओं को बुलाने तक सीमित रह गए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तक चुनावी साल में हर मोर्चा पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर जाता था। खास बात यह है कि सरकारी आयोजनों में सहभागिता को छोड़कर किसी भी मोर्चे ने अभी तक खुद का बड़ा आयोजन नहीं किया है। 

भाजयुमो: भारतीय जनता पार्टी में युवा मोर्चा प्रमुख माना जाता है। पार्टी युवा शक्ति और जोश का चुनाव में भरपूर इस्तेमाल करती है। लेकिन भाजयुमो की मौजूदा टीम ज्यादा जोश में नहीं दिख रही है। अभी तक मोर्चा का एक भी बड़ा आयोजन नहीं हुआ है। हालांकि रक्तदान, पौधरोपण जैसे कार्यक्रम जरूर फोटो खिंचाने तक सीमित रहे हैं। महिला मोर्चा: भाजपा का अब तक सबसे ज्यादा निष्क्रिम रहने वाला है मोर्चा है। महिला पदाधिकारियों के बीच पदों को लेकर शुरू से खींचतान। अभी तक कोई बड़ा आयोजन नहीं। चुनावी साल में सरकारी की महिला हितैषी योजनाओं को लेकर कोई बड़ी प्लानिंग नहीं। पार्टी की महिला विधायक, सांसद, एवं अन्य महिला जन प्रतिनिधियों से तालमेल नहीं। अन्य मोर्चांे की तरह महिला मोर्चा भी अभी तक बैठकों तक सीमित है।

किसान मोर्चा : किसान मोर्चा भी किसानों के बीच सरकार की योजनाओं का प्रचार करने में विफल रहा है। न किसानों की रैली, न सभाएं। सरकारी आयोजनों में सहभागिता के अलावा मोर्चा ने अपने स्तर पर कभी किसानों को जुटाने वाला आयोजन नहीं किया है। सिफारिशों के लिए अन्य मोर्चों से ज्यादा पत्र लिखने के लिए चर्चा में रहता है मोर्चा।

पिछड़ा वर्ग मोर्चा : मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाह के इस्तीफे के बाद से मोर्चा की गतिविधियां सुस्त हो गई हैं। नए अध्यक्ष नारायण सिंह कुशवाह मोर्चे को आगे खींचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उसमें वे कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। मोर्चा की टीम कुशवाह के नेतृत्व में चुनावी साल में दौडऩे को तैयार नहीं है। मोर्चा के अन्य पदाधिकारी सिर्फ बैठकों में ज्यादा सक्रियता दिखाते हैं। अभी तक पिछड़ा वर्ग मोर्चा ने ओबीसी आरक्षण एवं ओबीसी के पक्ष में जितने फैसले लिए हैं, उसको लेकर पिछड़ों के बीच कोई बयान नहीं किया है।

अजजा और अजा मोर्चा : पार्टी के अन्य मोर्चों की अपेक्षा अजजा औ अजा मोर्चा ज्यादा सक्रिय हैं। हालांकि ये मोर्चें भी चुनावी साल में उतना नहीं कर पा रहे हैं, जितना करना चाहिए। पेसा कानून को अजजा मोर्चा आदिवासियों के बीच मजबूती से पहुंचाने में विफल रहा है। अन्य मोर्चांे की तरह अजजा मोर्चा भी सरकारी कार्यक्रमों में सहभागिता तक सीमित है।

अल्प संख्यक मोर्चा : भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा चुनाव साल में ज्यादा सक्रिय दिखाई नहीं दे रहा है। नया कार्यालय शिफ्ट होने के बाद से मोर्चा के पदाधिकारियों का कार्यालय में मूवमेंट कम ही हो रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने अल्पसंख्यकों को कई योजनाओं के जरिए लाभ पहुंचाने का काम किया है। मोर्चा इसे भुनाने में अभी तक विफल रहा है। खास बात यह है कि पार्टी अल्प संख्यक मोर्चे से सभी अल्पसंख्यक वर्गों को जोडऩे में सफल नहीं हो पाया है।

इनका कहना है
भाजपा के सभी मोर्चा संगठन द्वारा बताए गए कामों में लगे हैं। बड़े-बड़े आयोजनों की वजाए छोटे-छोटे आयोजनों के जरिए अधिकतम लोगों के बीच पहुंचने का काम कर रहे हैं। सभी मोर्चों ने अभूतपूर्व काम किए हैं।
रजनीश अग्रवाल
प्रदेश मंत्री, भाजपा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Nečekaná reakce na Nalezení falešného medvěda za 5 sekund: Velmi jednoduchý IQ Tato hádanka vám Nová logická hra: Jen ti nejchytřejší Jenius od Jena: V tomto obraze Chytrou sovu naleznou za 9 sekund jen lidé s vysokým