भोपालमध्य प्रदेश

सहेली की सास ने नाबालिग को बेसुध कर एक लाख में बेचा, गुलामों की तरह रखकर पिता-पुत्र करते थे दैहिक शोषण

भोपाल ।  चूनाभट्टी इलाके में पिछले डेढ़ साल से लापता नाबालिग किसी तरह से अपने घर वापस आ गई। घर आने के बाद उसने डेढ़ साल के दौरान की दुखभरी दास्तां अपने स्वजनों को सुनाई, जिसे सुनकर सभी सन्न रह गए। नाबालिग को उसकी सहेली की सास ने पानी में नशीला पदार्थ पिलाकर पीथमपुरा के पास एक गांव में अधेड़ व्यक्ति को एक लाख रूपये में बेच दिया था। जहां वह व्यक्ति और उसका बेटा उसे बंधक बनाकर गुलामों की तरह बर्ताव करते हुए उसका दैहिक शोषण कर रहे थे। रंगपंचमी पर किसी तरह वह उनके चंगुल से भाग निकली और दूसरों की मदद लेकर बड़ी मुश्‍किल से अपने घरवालों के पास वापस पहुंची। तब जाकर इस मामले का खुलासा हुआ। पुलिस ने पीडिता की शिकायत पर एफआइआर दर्ज कर अगवा करने वाली महिला और नाबालिग से दुष्कर्म करने वाले पिता-पुत्र की तलाश शुरू कर दी है।

चूनाभट्टी थाना प्रभारी नितिन शर्मा के मुताबिक इलाके में रहने वाली नाबालिग अचानक से 15 जुलाई 2021 को घर से लापता हो गई थी, स्वजनों ने उसकी गुमशुदगी थाने में दर्ज कराई थी। काफी तलाश करने के बाद वह नहीं मिली थी। रंग पंचमी के दो दिन बाद वह अचानक चूनाभट्टी में अपनी ताई के घर पर पहुंची। जहां उसने पूरे डेढ़ साल तक की पूरी दास्तां बयां की। यह सुनकर नाबालिग के स्वजन सन्‍न रह गए और उन्‍होंने उसके साथ थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई। पीड़िता अब बालिग है।

सहेली की सास ने एक लाख में बेचा

मामले की जांच अधिकारी एसआइ गोसिया सिद्दकी ने बताया कि नाबालिग 15 जुलाई 21 को अपने घर से निकलकर अपनी सहेली के घर पर गई थी। जहां पर सहेली की सास ने उसे पानी पिलाया। उसके बाद वह बेहोश हो गई थी। जब उसे होश आया तो वह अनजान स्थान पर थी। जहां उसके सामने सहेली की सास लक्ष्मी खड़ी थी। जब उसने पूछताछ की तो नाबालिग को पता चला कि उसे लक्ष्मी ने एक लाख रूपये में ग्राम हंसलपुरा पथवारी पीथमपुरा में हरिसिंह नाम के व्यक्ति को बेच दिया था। उसके बाद लक्ष्मी उसे छोड़कर वापस भोपाल आ गई।

पिता-पुत्र दोनों करते थे दुष्कर्म

पीडिता ने पुलिस को बताया कि आरोपित हरिसिंह और उसका बेटा इंदर भांवरकर उसे गुलाम की तरह रखते थे और जब मन करता था तो दोनों उसका शरीरिक शोषण किया करते थे। उससे दिनभर खेतों में जी-तोड़ काम कराया जाता था। दो-दिन में एक बार खाना दिया जाता था। विरोध करने या भागने की कोशिश पर उसके साथ मारपीट की जाती थी। रंग पंचमी पर वह किसी तरह से गांव से भागने में कामयाब हो गई और भटकते-भटकते अपने घर पहुंची।

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