देवी भागवत महापुराण आयु, आरोग्य, पुष्टि, सिद्धि एवं आनंद कथा मोक्ष प्रदान करने वाला दिव्य ग्रंथ है: कान्हाजी महाराज
आंवलीघाट स्थित गुरुदेव दत्त कुटी में चल रही है श्रीमद देवी भागवत महापुराण
रेहटी। देवी भागवत महापुराण आयु, आरोग्य, पुष्टि, सिद्धि एवं आनंद कथा मोक्ष प्रदान करने वाला दिव्य ग्रंथ है। देवी भागवत एक अत्यंत गोपनीय पुराण है, जिसका वर्णन सर्वप्रथम भगवान शिव ने महात्मा नारद के लिए किया। पूर्वकाल में उसे फिर स्वयं भगवान व्यास ने भक्तिनिष्ठ महर्षि जैमिनि के लिए श्रद्धापूर्वक कहा और फिर उसी को वर्तमान में प्रेषित किया जाता है। इसके श्रवण करने तथा पाठ करने में समस्त प्राणियों को पुण्य प्राप्त होता है। उक्ताशय के उद्गार व्यासपीठ से कान्हा जी महाराज ने किया। उन्होंने कहा कि देवी सभी की उत्पत्तिकर्ता मानी जाती है, क्योंकि आरम्भ में, परम शक्ति शनिर्गुण (बिना आकार के) थी, जिसने बाद में स्वयं को तीन शक्तियों (सात्त्विक, राजसी और तामसी) के रूप में प्रकट किया। कान्हा जी महाराज ने शुक्रवार की कथा में मां भद्रकाली महासरस्वती महालक्ष्मी के अवतार की कथा का वर्णन किया
गुरुदेव दत्त कुटी आंवलीघाट तट पर स्वामी जमुनागिरी जी महाराज के पावन सानिध्य में चल रही श्रीमद देवी भागवत महापुराण के आठवें दिन कथा प्रवक्ता अर्जुनराम शास्त्री कान्हा जी महाराज ने तुलसी विवाह की कथा श्रवण कराते हुए बताया कि जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था, जिसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और पतिव्रता थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। अपने अजेय होने पर जलंधर को अभिमान हो गया और वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।
कान्हा जी महाराज ने बताया कि भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का श्राप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के श्राप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालीगग्राम कहलाया।
सत्त्विक शक्ति- रचनात्मक क्रिया और सत्य का प्रतीक है।
राजसी शक्ति- लक्ष्यहीन कर्म और जुनून पर केंद्रित है।
तामासी शक्ति- विनाशकारी क्रिया और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है।
देवी भागवत महापुराण ने देवी दुर्गा को परम सत्य के रूप में वर्णित किया गया है और वह श्निर्गुण (बिना आकार के) के रूप में ब्रह्मांड का परम स्रोत है और साथ ही सभी का शाश्वत अंत है। उन्हें शक्तिशाली रचियता और दयालु सर्वव्यापी के रूप में पूजा जाता है। इस दिव्य देवी को प्रबुद्ध ज्ञान है, जिसके पास समस्याओं से परेशान सभी साहसी देवता मदद के लिए आते हैं और उनकी कृपा पर निर्भर होते हैं, क्योंकि उन्हें ब्रह्मांड का संरक्षक माना जाता है। वह अष्टंगी हैं (आठ भुजाएं हैं, प्रत्येक में विभिन्न हथियार पकड़े रखती हैं)।
गुरुदत्त कुटी आंवलीघाट में चल रही देवी भागवत कथा में कान्हा जी महाराज जी ने कहा कि सभी प्राणी जिनके भीतर स्थित हैं और जिनसे सम्पूर्ण जगत प्रकट होता है, जिन्हें परम तत्व कहा गया है, वे साक्षात स्वयं भगवती ही हैं। सभी प्रकार के यज्ञों से जिनकी आराधना की जाती है, जिसके साक्षात हम प्रमाण हैं, वे एकमात्र भगवती ही हैं। जो इस समग्र जगत को धारण करती हैं तथा योगीजन जिनका चिंतन करते हैं और जिनसे यह विश्व प्रकाशित है, वे एकमात्र भगवती दुर्गा ही इस जगत में व्याप्त हैं।
दूर-दूर से आ रहे भक्त: स्वामी जमुनागिरी महाराज
गुरूदेव दत्त कुटी के स्वामी जमुना गिरीजी महाराज ने बताया कि आज की कथा में दूर-दूर से भक्त लोग कथा श्रवण करने के लिए पधारे। भक्तगण यहां आकर श्रीमद देवी भागवत महापुराण सुन रहे हैं और प्रसादी ग्रहण करके यहां से जाते हैं। इस दौरान कई भक्त भजनों पर नाचते-गाते भी हैं। उन्होंने बताया कि कान्हा जी महाराज के साथ पधारे हुए संगीतकारों ने सुंदर भजन गाया। झूठी दुनिया से मन को हटाले ध्यान मैया जी के चरणों में लगाले, जिसे सुनकर सभी भक्त लोग झूम उठे। महाराज जी के साथ भजन गायक रवि शास्त्री, भोला शास्त्री, जगदीश जी, गोमती सिंह, चित्ती वाले एवं सुधीर शास्त्री आदि हैं। कल कथा के अंतिम दिन भंडारा महाप्रसादी का वितरण होगा। इस दौरान दत्तात्रेय जयंती महोत्सव भी मनाया जाएगा, इसमें ज्यादा से ज्यादा भक्तजनों को पधारने की अपील की है।