दिल्ली हाईकोर्ट से 7 महीने की गर्भवती महिला को मिली अबॉर्शन की इजाजत
नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 28 सप्ताह की गर्भवती महिला को भ्रूण की असामान्यता को देखते हुए उसे गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है। उच्च न्यायाल ने अपने फैसले में कहा है कि प्रजनन पसंद व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है। न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि अगर उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जाती है तो याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। वहीं गर्भ की असमान्यता को देखते हुए याचिकाकर्ता को अपने गर्भ को रखने अथवा नहीं रखने के निर्णय की स्वतंत्रता देना ही न्यायसंगत है।
पीठ ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की राय को देखने के बाद यह आदेश दिया गया है। उच्च न्यायालय ने पाया कि भ्रूण स्वास्थ व सामान्य जीवन के अनुकूल नहीं है। पीठ के अनुसार चिकित्सा विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चे को जीवन के प्रारंभिक चरण में ह्दय की सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है अथवा कुछ समय बाद भी ऐसी स्थिति बन सकती है। पीठ ने माना कि इस तरह बच्चा अपनी किशोरावस्था व वयस्कता की उम्र में चिकित्सीय देखभाल पर ही निर्भर रह सकता है। ऐसे में बच्चे के जन्म के लिए पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं व अन्य दिक्कतों को देखते हुए गर्भपात की अनुमति देना सही है।
पीठ ने कहा कि यााचिकाकर्ता यह तर्क देने में सफल रही कि गर्भावस्था के दौरान ही भ्रूण एक दुर्लभ जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है, जो कि एक 'पर्याप्त भ्रूण असामान्यता' है, जिसमें परिचर जटिलताओं और जोखिमों के साथ होगा। याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि पीठ ने यह निर्णय देने से पहले एक मेडिकल बोर्ड गठित कर महिला के गर्भ की जांच के आदेश दिए थे। मेडिकल बोर्ड ने ही रिपोर्ट में बताया कि भ्रूण को जन्म के तुरंत बाद ह्दय सर्जरी की आवश्यकता पड़ेगी।