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एक रुपये में चाकलेट नहीं मिलता, लेकिन सरकार खिला देती है फल; चार रुपए वाली मैगी से दूर भागती भूख

छौड़ाही (बेगूसराय)
वंचित गरीब परिवारों का कुपोषण मिटाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं संचालित की है। कुपोषण मिटाओ अभियान के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर पूरक पोषाहार के तहत बच्चों को पका हुआ खाना मीनू के अनुसार देने का प्रविधान किया गया है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर सप्ताह में चार दिन बच्चों को खिलाए जाने वाले फल के लिए सरकार ने प्रति बच्चे एक रुपये की राशि तय कर रखी है। महंगाई के इस दौर में एक रुपये में तो चाकलेट भी बाजारों में नहीं मिलता है। इसके अलावा कई ऐसी सामग्री है, जिसकी कीमत सरकार ने विद्यालय में चलने वाले मध्याह्न भोजन के लिए अलग और आंगनबाड़ी केंद्र के लिए अलग तय कर रखी है। इन सामग्रियों की कीमत जो सरकार ने तय कर रखी है वह वर्तमान बाजार भाव से काफी कम है।

यह है आंगनबाड़ी केंद्र का मीनू
आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को दो बार यानी सुबह का नाश्ता एवं भोजन देने का प्रविधान है। सोमवार को भुना चना, चावल, मूंगफली, पुलाव। मंगलवार को केला या पपीता, आलू चना, मौसमी फल सब्जी एवं चावल। बुधवार को चूड़ा, गुड़ सोयाबीन सब्जी और चावल। गुरुवार को केला, पपीता, रसिया और मौसमी फल। शुक्रवार को दूध, कद्दू, दाल एवं चावल। शनिवार को केला या पपीता, मौसमी फल एवं खिचड़ी एवं विशेष पोषाहार दिन में मैगी प्रति बच्चा 3.99 रुपये की दर से देने का प्रविधान है।

आंगनबाड़ी के लिए तय सरकारी दर
दाल 69 रुपये, चना 70 रुपये, तेल 110 रुपये, गुड़ 45 रुपये, मूंगफली 100 रुपये, सोयाबीन 90 रुपये, आलू 07 रुपये, मैगी 3.99 रुपये, केला-पपीता आदि मौसमी फल के लिए एक रुपये प्रति बच्चा आठ दिन दो रुपये प्रति बच्चा चार दिन, एक रुपये अतिरिक्त दिन सरकारी कीमत निर्धारित है।

महंगाई ने सामग्री की कीमत में लगाई आग
सामग्री            दो वर्ष पूर्व                 अब
आलू             छह से आठ रुपया           20
कद्दू               04 से 06 रुपए             10
साग                 पांच रुपए                  10
केला               20 रु दर्जन                 40
पपीता               20-25                     45
सेब               100 से 120               200
खाद्य तेल               120                  180

इस बारे में आंगनबाड़ी सेविकाओं का कहना है कि बाजार भाव और सरकार द्वारा देय राशि में इतना बड़ा अंतर है कि किसी तरह केंद्र संचालित कर रहे हैं। बहुत दिक्कत होती है। सरकार को बराबर सामग्रियों के दर का निर्धारण करना चाहिए। वहीं, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी का कहना है कि दर सरकार के स्तर पर तय होता है। हम लोगों की जिम्मेवारी केंद्र संचालन की है।

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