यूपी-दिल्ली सहित छह राज्यों की बिजली प्रोजेक्ट पर 57 साल बाद भी आस अधूरी
देहरादून
यूपी-दिल्ली सहित छह राज्यों की बिजली प्रोजेक्ट पर 57 साल बाद भी आस अधूरी है। 660 मेगावाट का किसाऊ पॉवर प्रोजेक्ट 57 सालों से फाइलों में ही दौड़ रहा है। 57 साल पहले वर्ष 1965 में इस प्रोजेक्ट की प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार होना शुरू हुई। 1998 में जाकर इस प्रोजेक्ट की पहली बार डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार हुई थी। इसके बाद भी इस प्रोजेक्ट में तमाम अड़चनें आती रही। अभी भी डीपीआर तैयार करने का काम ही इस प्रोजेक्ट पर चल रहा है। जबकि इस बीच तमाम सरकारें आकर निकल गई। प्रोजेक्ट का शुभारंभ वर्ष 1965 में हुआ था। जब इसकी प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार किए जाने की घोषणा हुई। वर्ष 1968 में इसी प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार हुई। इसके बाद भी डीपीआर तैयार करने में वर्ष 1998 तक का समय आ गया। यूपी हाईिडल की ओर से इस पर काम किया जा रहा था। इस बीच राज्य का गठन हो गया। 2006 में टीएचडीसी के पास भी इसकी डीपीआर रही। हालांकि काम कुछ नहीं हुआ।
वर्ष 2010 में ये प्रोजेक्ट उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के पास आया। 2011 में डीपीआर रिवाइव कर भेजी गई। वर्ष 2016 में हिमाचल और उत्तराखंड के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर एमओयू हुआ। तय हुआ कि बिजली आपस में बराबर बांटी जाएगी। अक्तूबर 2018 में केंद्र इस प्रोजेक्ट के वॉटर कंपोनेंट का 90 प्रतिशत देने को तैयार हुआ। बावजूद इसके अभी भी दोनों राज्य पॉवर कंपोनेंट का भी 90 प्रतिशत देने की मांग कर रहे हैं। या फिर जिन राज्यों को इसके पानी से लाभ होने वाला है, वे इस खर्च को वहन करे। इस पर अभी तक विचार मंथन चल रहा है। किस तरह इस प्रोजेक्ट पर खर्चा कम से कम आए, इसे लेकर इसकी डीपीआर पर अभी भी काम चल रहा है।
छह राज्यों को मिलना है पानी
इस प्रोजेक्ट से जहां उत्तराखंड, हिमाचल को बिजली मिलनी है। वहीं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल को पानी भी मिलना है। इसी वॉटर कंपोनेंट को लेकर उत्तराखंड, हिमाचल की मांग है कि बाकि राज्य बिजली वाले कंपोनेंट में भी हिस्सेदारी करे। या फिर केंद्र सरकार पॉवर के 90 प्रतिशत खर्च को वहन करे।