रूस के खिलाफ IAEA के प्रस्ताव से भारत ने बनाई दूरी, वोटिंग में नहीं लिया

जेनेवा
यूक्रेन पर जिस तरह से रूस ने हमला किया है उसके बाद रूस के खिलाफ तमाम पश्चिमी देश एक के बाद एक कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानि IAEA के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने यूएन में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया, जिसमे भारत ने हिस्सा नहीं लिया। भारत ने इस प्रस्ताव से खुद को दूर रखा है। आईएईए ने अपने प्रस्ताव में बुधवार को परमाणु ऊर्जा संयंत्रो के आसपास युद्ध के खतरे को लेकर चिंता जाहिर की थी। इसी को लेकर रूस के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया था,जिसमे कुल 26 देशों ने इसके पक्ष में वोट किया जबकि दो देशों ने इसके विरोध में वोट किया। वहीं भारत के अलावा पाकिस्तान, सेनेगल, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका ने इस वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
रूस और चीन ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया और अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए चीन के प्रतिनिधि वांग कुन ने कहा कि इस प्रस्ताव में कई राजनीतिक वजहों को पेश किया गया है, जिसके चलते आईएईए की स्वतंत्रता कमजोर हुई है। बिना सभी पक्षों का सुझाव और संशोधन लिए इसे संबंधित देशों को जबरन थोपा गया है। लिहाज वोट के लिए इस जबरन प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसी वजह से हम इसके खिलाफ वोट कर रहे हैं। चीन ने उजबेकिस्तान में परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की है।
बता दें कि IAEA में कुल 35 देश शामिल हैं, इसमे एक बोर्ड ऑफ गवर्रन हैं। यह यूएन के द्वारा गठित एक एजेंसी है जोक परमाणु संयंत्रों पर नजर रखती है। रूस के खिलाफ प्रस्ताव को पोलैंड और कनाडा ने तैयार किया था। गौर करने वाली बात है कि इससे पहले यूएनएचआरसी में भी रूस के खिलाफ प्रस्ताव का भारत ने समर्थन नहीं किया था और खुद को इस वोटिंग से दूर रखा था। आईएईए के प्रस्ताव में कहा गया था कि रूस तत्काल प्रभाव से यूक्रेन में चर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हमले को रोके, यूक्रेन प्रशासन को फिर से इसपर पूरा नियंत्रण हासिल करने दिया जाए और इसकी रक्षा करने दिया जाए।
इस बीच जेनेवा में 49वें मानव अधिकार काउंसिल सेशन के दौरान यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने देश के भीतर मानवाधिकारों को लेकर चिंता जाहिर की। भारत ने कहा कि हम यूक्रेन में मानवाधिकारों की स्थिति बिगड़ते देख चिंतित हैं। हम अपील करते हैं कि तुरंत हिंसा को रोका जाए और स्थिति को सामान्य किया जाए। लोगों की जान लेकर कोई समाधान हासिल नहीं किया जा सककता है। बातचीत और कूटनीति आपसी मतभेद को खत्म करने के लिए एकमात्र विकल्प हैं।