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कहानी करगिल की: पाकिस्तान की धोखेबाजियों से शुरू, भारतीय वीरों की जांबाजी पर हुआ खत्म

 नई दिल्ली
 
करगिल युद्ध, भारतीय सेना की  वीरता का 23 साल पुराना ऐसा सबूत, जो आज भी दुश्मनों के पसीने छुड़ाने के लिए काफी है। पूरा देश 26 जुलाई यानि मंगलवार को भारतीय करगिल में भारतीय वीरों के शौर्य का उत्सव मना रहा है। पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय सेना की इस कार्रवाई को 'ऑपरेशन विजय' के नाम से भी जाना जाता है। अगर संक्षेप में समझें तो पाकिस्तान की धोखेबाजियों से शुरू हुआ यह युद्ध भारतीय सैनिकों ने बहादुरी और जीत के साथ खत्म किया था। विभाजन से पहले करगिल, लद्दाख की एक तहसील थी, जहां अलग-अलग घाटियों में विविध भाषा, जातीय और धार्मिक समूह के लोग रहा करते थे। अब 1947-18 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और नियंत्रण रेखा अस्तित्व में आई। अब इस रेखा के चलते लद्दाख जिले का विभाजन हुआ और स्कार्दु तहसील पाकिस्तान का हिस्सा बन गई।

दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष का दौर यहां खत्म नहीं हुआ था। 1971 में फिर सशस्त्र संघर्ष हुआ और बाद में शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके जरिए वादा किया गया था कि दोनों देश सीमा के संबंध में जंग नहीं करेंगे। हालांकि, संघर्ष का दौर रुका नहीं, क्योंकि दोनों ही देश सैन्य चौकियों के जरिए सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे थे।

इसके बाद कश्मीर में अलगाववादियों के कारण साल 1990 में तनाव और बढ़ा गया था। कहा जाता रहा कि इनमें से कुछ का समर्थन पाकिस्तान कर रहा है। इसके बाद दोनों देशों ने फिर 1999 में द्वपक्षीय शांति के लिए लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था। पाकिस्तानी सेना गुप्त तरीके से सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को ट्रैनिंग दे रही थी और भारतीय क्षेत्र में भेज रही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इनमें से कुछ मुजाहिदीन के वेश में भारत में घुसे थे।

क्या था मकसद
कहा जाता है कि ये कश्मीर और लद्दाख के बीच कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से पीछे हटने के लिए मजबूर करना चाहते थे। ऐसे में अगर तब उनके मंसूबे कामयाब हो गए होते, तो भारत को कश्मीर विवाद पर बातचीत करनी पड़ती। हालांकि, भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ का देश की सेना ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया और युद्ध को जीत लिया।

एक नजर युद्ध पर
दरअसल, साल 1999 में करगिल युद्ध पाकिस्तान के घुसपैठियों के खिलाफ लड़ा गया था, जो नियंत्रण रेखा को पार कर 1998 में भारतीय क्षेत्र में आ गए थे। भारतीय सेना को जब पाकिस्तान के प्लान के बारे में पता चला, तो सेना ने तत्काल कार्रवाई की औऱ थोड़े ही समय में 2 लाख भारतीय सैनिक पहुंच गए। अब जब युद्ध शुरू हुआ तो ऊंचाई पर पहले ही जगह हासिल करने के चलते पाकिस्तान को फायदा हुआ। उनके लिए भारतीय सैनिकों पर गोली चलाना आसान हो गया। पाकिस्तान ने दो भारतीय लड़ाकू विमानों को तबाह कर दिया और एक अन्य क्रैश हो गया। जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान से LOC से अपनी सेना पीछे लेने के लिए कहा तो पाकिस्तान ने यूएस से दखल देने की मांग की थी।

इसके बाद जब पाकिस्तान अपनी सेना को पीछे लेने में व्यस्त था, तो भारतीय सेना ने बची हुई पाकिस्तानी चौकियों पर हमला कर दिया और ऊंचाई पर नियंत्रण हासिल कर लिया। 26 जुलाई तक सेना ने मिशन पूरा किया। इस दौरान 527 सैनिक शहीद हुए। जबकि, पाकिस्तानी पक्ष में 700 मौतें दर्ज की गईं।

 

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