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दादागुरू पर एमपी में हुआ शोध, अब अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी ने भी लिखा पीएम मोदी को पत्र

- टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट ने जताई दादागुरू पर रिसर्च की इच्छा

सुमित शर्मा, सीहोर
9425665690
प्रसिद्ध संत दादागुरू के निराहार एवं हवा-पानी के सहारे जीवित रहने को लेकर इस समय दुनिया अंचभित है। विज्ञान भी इसको लेकर आश्चर्यचकित है कि कोई भी व्यक्ति बिना अन्न ग्रहण किए कैसे इतनी उर्जा के साथ रह सकता है। महान संत दादागुरू ने पिछले चार वर्षों से अधिक समय से अन्न ग्रहण नहीं किया है एवं बिना अन्न ग्रहण किए वे तीन बार की पैदल नर्मदा परिक्रमा भी कर चुके हैं। अब वे सिर्फ हवा के सहारे चल रहे हैं। 24 घंटे में सिर्फ एक बार जल ग्रहण करते हैं। इसके अलावा वे कुछ भी नहीं ले रहे हैं। दादागुरू को लेकर मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में 7 दिनों तक शोध किया गया है। इसके बाद इसकी रिपोर्ट भी रजिस्ट्रार मप्र मेडिकल कौंसिल को भेजी गई है। अब दादागुरू पर रिसर्च के लिए अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख पी हेमचंद्र रेड्डी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि वे इस शोध कार्य में सपोर्ट करें।
जबलपुर मेडिकल कॉलेज ने किया 7 दिनों तक शोध-
जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज ने महान संत दादागुरू पर 7 दिनों तक वैज्ञानिक शोध किया है। यह शोध 22 मई 2024 से 29 मई 2024 तक किया गया। इसके लिए शोध समिति का गठन भी किया गया था। इस समिति में नीलेश रावल अध्यक्ष नर्मदा मिशन जबलपुर, प्रो. डॉ. आरएम शर्मा एमडी-डीएम ह्दय रोग विशेषज्ञ एवं पूर्व कुलपति मप्र मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर, प्रो. डॉ. पी पुणेकर एमडी प्रोफेसर मेडिकल विभाग एनएससीवी मेडिकल कॉलेज जबलपुर एवं प्रो. डॉ आर महोबिया एमडी पैथोलॉजी एनएससीबी मेडिकल कॉलेज जबलपुर थे। शोध समिति की सहायता के लिए रेसीडेंट डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टॉफ एवं पुलिस प्रशासन की टीम भी थी। शोध समिति द्वारा 22 मई 2024 से 29 मई 2024 तक प्रतिदिन दादागुरू के शारीरिक, मानसिक, बायोकेमिकल एवं अन्य अन्वेषणीय मानकों का लगातार परीक्षण किया गया। इस दौरान दादागुरू की सीसीटीव्ही कैमरों, वीडियोग्राफी एवं पुलिस टीम द्वारा भी सतत निगरानी की गई।
शोध में ये सामने आए आश्चर्यजनक परिणाम-
समिति द्वारा संत दादागुरू के शोध के दौरान आश्चर्यजनिक परिणाम भी सामने आए। समिति ने जो रिपोर्ट तैयार की उसमें कहा है कि दादागुरू ने शोध की अवधि के दौरान कोई भी खाद्य पदार्थ नहीं लिया। उन्होंने केवल 300 से 1000 मिली लीटर प्रतिदिन नर्मदा का जल ही ग्रहण किया। इस अवधि में वे लगातार सुबह 7 बजे से शाम तक 25 से 30 किलोमीटर की पैदल नर्मदा परिक्रमा भी करते रहे। इसके बाद भी उनका शारीरिक परीक्षण सामान्य रहा। वे मानसिक रूप से भी पूरी तरह सहज, सामान्य रहे। उनकी पल्स, ब्लड प्रेशर, श्वास, तापमान एवं अन्य परीक्षण भी अधिकतर सामान्य ही रहे। हालांकि शोध के दौरान शुगर 57 से 65 एमजी तक कम हुई, लेकिन ऐसे कोई लक्षण सामने नहीं आए। यह शुगर स्वतः ही कुछ समय में सामान्य हो गई। शोध टीम ने गुर्दे से संबंधित जांच जैसे ब्लड यूरिया, क्रिराटीनिन की भी जांच की। ये भी सामान्य से कुछ अधिक पाए गए, पर इसके भी कोई ऐसे लक्षण सामने नहीं आए। रक्त कणिकाएं, प्लेटलेट्स में भी सामान्य सी भिन्नता देखी गई। हालांकि ये भी स्वतः ही सामान्य हो गई। इसे नानस्पेसिफिक कारण कहा गया है। शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान दादागुरू भी सामान्य रहे। वे प्रतिदिन 42 से 45 डिग्री टेम्प्रेेचर में 25-30 किलोमीटर पैदल भी चले। हालांकि बिना अन्न ग्रहण किए सामान्य व्यक्ति के लिए इतनी गर्मी में पैदल चलना आसान नहीं है, वैज्ञानिक रूप में यह अत्यंत विस्मयकारी है। शोध में यह भी कहा गया है कि उनके साथ जो लोग चल रहे थे उन्हें बार-बार पानी पीना पड़ रहा था, रूकना भी पड़ रहा था, लेकिन दादागुरू के साथ ऐसी स्थितियां नहीं रहीं।
दादागुरू ने कहा, उन्हें प्रकृति से प्राप्त होती है उर्जा-
महान संत दादागुरू ने कहा कि उन्हें प्रकृति, वृक्ष, पौधों, बहती हुई नदी के जल, नर्मदा पथ पर छोटे-छोटे पत्थर, कंकड़, भूमि, हवा से उर्जा मिलती है। इनके संपर्क में आने से असीमित उर्जा मिलती है। नर्मदा परिक्रमा करते हुए जल एवं हवा से ही उर्जा प्राप्त होती रहती है। इतनी तेज धूप में सूर्य से भी उर्जा प्राप्त होती है। कई लोग पूछते हैं कि उन्हें इनसे उर्जा क्यों नहीं मिलती है तो दादागुरू ने कहा कि निष्काम भाव से शुद्ध आत्मा से रहने पर प्रकृति यह उर्जा प्रदान करती है। सभी को प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, प्रकृति को सुरक्षित रखना चाहिए और प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा संपर्क में रहना चाहिए।
दादागुरू ने दिया था सहमति पत्र-
इस शोध कार्य के लिए संत दादागुरू ने सहमति पत्र भी दिया था। उन्होंने सहमति पत्र में नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर में निराहार रहते हुए शारीरिक प्रभाव शोधकार्य के लिए भर्ती होने की अनुमति भी दी थी। इस दौरान वे नर्मदा पथ पर भी चले एवं वहां भी उन पर शोध किया गया। शोध के बाद यह भी सामने आया कि नर्मदा जल शुद्धता की कसौटी पर खरा उतरा है तथा उसमें अनेक ट्रेस एलीमेंट कम मात्रा में है। हानिकारण पदार्थ बिल्कुल नहीं है। लंबे समय तक इस जल को ग्रहण करने से शारीरिक लाभ होगा। दादागुरू भी इसी जल का सेवन लंबे समय से कर रहे हैं।
शोधकार्य में ये लक्षण सामान्य मिले-
– जल का स्वाद एवं गंध रूचिकर स्वीकार्य थी।
– पीएच-अलकालाइन का 7.4 जो स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है।
– धुले हुए सॉलिड तत्वों की सांद्रता, केल्सियम, मैग्नीशियम, नाइटेट, हाईनेस सही मात्रा में थी।
– आयरन, क्लोराइड, फ्लोराड, सल्फेट की मात्रा भी सही थी।
– केडिमियम, लेड सीसा, मरकरी, आर्गेनिक बिल्कुल नहीं थे।
– फिनाल कम्पाउंड, सल्फाइड, बोरस, पेस्टीसाइड्स नहीं पाए गए।
– माइक्रोबाइलॉजी टेस्ट में बहुत कम मात्रा में कोलीफार्म थे तथा इकोलाई बिल्कुल नहीं थे।
– साइनाइड, अमोनिया, बेरियम, सेलेनियम, कालीब्डीनम, एरोमेटक, हाइडोकार्बन, एल्युमीनियम नहीं थे।
– रेडियोधर्मी पदार्थ भी नहीं पाए गए।
– जल में ग्लूकोज, सुक्रोज, प्रोटीन नहीं थे, सोडियम, पोटेशियम की माइक्रो क्वांटिटी न्यून स्तर पर थी।

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