सीहोर के कांग्रेस नेता ने उठाया सवाल, अजा विभाग की प्रदेश स्तरीय बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोटो नहीं लगाना अशोभनीय

सीहोर। कांग्रेस ने अपना राष्टÑीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाया है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अब तक उनको अध्यक्ष के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। दरअसल प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में हुई अनुसूचित जाति विभाग की बैठक में जो बैनर लगाया गया है उसमें राष्टÑीय अध्यक्ष को जगह नहीं दी गई है। बैनर में सोनिया गांधी, राजीव गांधी, प्रियंका गांधी के साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का फोटो तो लगा है, लेकिन राष्टÑीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का फोटो नहीं लगाया गया है। इस मामले में जिला कांग्रेस महासचिव पंकज शर्मा ने एक बयान जारी करते हुए बताया कि बुधवार 2 नवम्बर को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय भोपाल में कांग्रेस अनुसुचित जाति विभाग की प्रदेश स्तरीय बैठक आयोजित हुई थी। इसमें देखा गया कि बैठक स्थल पर जो बैनर लगा हुआ था। उसमें कांग्रेस के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे जी का फोटो नहीं था, जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष भी अनुसुचित जाति वर्ग से ही आते हैं। कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग का यह कृत्य अशोभनीय है। पंकज शर्मा ने कहा है कि इस तरह की अनदेखी यह साबित करती है कि कुछ समय पूर्व ही बसपा छोड़ कांग्रेस में आए कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार को अभी कांग्रेस की विचारधारा एवं रीति-नीति का ज्ञान नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से विशेष आग्रह है कि ऐसे अवसरवादी लोगों को संगठन में इतना महत्वपूर्ण दायित्व न सौंपा जाए और न ही टिकट वितरण के समय ऐसे लोगों के नाम पर विचार किया जाए। इस मामले में जिम्मेदारी तय कर संबंधित के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए, ताकि आगे से कोई भी हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष की अनदेखी ना कर सके। पंकज शर्मा ने आगे कहा कि कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण एवं संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोगों को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जो कि कम से कम पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस पार्टी के प्राथमिक सदस्य हों। कुछ समय पूर्व ही अन्य दलों से आए लोगों को यदि ऐसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है तो कोई भरोसा नहीं रहता कि आगे समय आने पर वह लालच में आकर पुन: दल-बदल ना करें। हाल के वर्षों में राजनीति में जो दलबदल की घटनाएं बढ़ी हैं उसका कारण ही यही है कि राजनीतिक दल दूसरे दलों से आए लोगों को ज्यादा महत्व देने लगे हैं और अपने मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने लगे हैं। समय आने पर ये दलबदलू पुन: दलबदल करके सरकारें तक गिरा देते हैं जैसा कि कुछ समय पूर्व कर्नाटक और मध्यप्रदेश में भी देखा गया था।

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