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प्रजननकाल में भी मारी जा रही मछलियां, विभाग बेपरवाह, अफसर लापरवाह

जानकारी के बाद भी नहीं हो रही अवैध मछली कारोेबारियों पर कार्रवाई

सीहोेर। जिले में प्रजनन काल में भी नर्मदा सहित अन्य नदियों से मछली पकड़ने का कारोबार जमकर फलफूूल रहा है। प्रजनन काल 16 जून से 15 अगस्त तक की अवधि का होता है, लेकिन इसमेें भी अवैध मछली कारोबारी खुलेआम मछलियां मार रहे हैं औैर उन्हें भोपाल सहित अन्य शहरों में भेज रहे हैं। वे नगरीय क्षेेत्रों में दुकान लगाकर भी मछली खुलेआम बेच रहे हैैं। ये सारी स्थिति सीहोर जिले के मत्स्य विभाग के अधिकारियों सहित अन्य वरिष्ठ अफसरों के संज्ञान में हैं, लेेकिन मछली कारोबारियों की ऐसी सेंटिंग है कि अफसर कार्रवाई करने से भी गुरेज कर रहे हैं। इस मामले मेें जहां मत्स्य विभाग बेपरवाह है तोे वहीं विभाग के अधिकारियों की भी लापरवाही सामने है।
इस तरह चलता है कारोबार, अफसरोें के पास एडवांस पहुंच जाती है रिश्वत-
यूं तो जनसामान्य के लिए मछली केवल एक साधारण सा जीव है, लेकिन इसके पीछे लाखोें-करोड़ोें का खेल होता है। जब इस मछली कारोबार को जानने की कोशिश की तो कई हकीकत सामने आई। दरअसल प्रजनन काल में चल रहे मछली के अवैध कारोेबार कोे लेकर हमारी टीम ने पड़ताल की। इस पड़ताल में सामनेे आया कि अवैध मछली कारोबारी स्थानीय मछली शिकारियों से नर्मदा नदी से मछली पकड़वाते हैं। मछली शिकारी दिनभर नर्मदा नदी में डोंगों से जाल बिछाकर मछलियां पकड़ते हैं और इन मछलियों को नग के हिसाब से बेचते हैं। अमूमन 10 से 12 किलो की मछली प्रति नग 600 से 800 रूपए मेें बेची जाती है। यही मछली भोपाल सहित अन्य शहरों में जाकर प्रति किलो के भाव से बिकती है। इस समय मछली का भाव 150 से 180 रूपए प्रतिकिलो चल रहा है। इस तरह से एक मछली से 1500 से 1800 रूपए की कमाई की जाती है। मछली शिकारी नर्मदा से मछली पकड़ने के बाद व्यापारियोें को दे देते हैं। ये व्यापारी नर्मदा किनारेे से मछलियां बोरियों मेें भरकर लाते हैं औैर फिर जहां-तहां खड़ी उनकी व्हीआईपी गाड़ियां जिनमें स्कार्पियोे, इनोबा, बोलेरो, स्वीफ्ट सहित अन्य गाड़ियों में भरकर भोपाल सहित अन्य शहरों में भेज देतेे हैं। पड़ताल में सामने आया, जिसमें एक मछली व्यापारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस अवैध मछली के कारोबार में विभाग के अधिकारियोें सहित स्थानीय पुलिस केे अधिकारी एवं पुलिस कर्मचारी शामिल रहते हैं। मत्स्य विभाग के अधिकारियोें के पास एडवांस में ही इसकी रिश्वत पहुंचा दी जाती है। वे खानापूर्ति के लिए एडवांस में ही कार्रवाई का प्रारूप तय कर देते हैैं और उसमें तारीख नहीं डालते। कई बार दबाव मेें कार्रवाई दिखानी पड़ती है तो वे अपने प्रारूप में तारीख डाल देते हैं। मछली व्यापारी ने यह भी बताया कि उनकी मछली कई बार पकड़ाई औैर पुलिस एवं प्रशासन ने इसे नीलाम किया तोे उन्होेंने ही इसे वापस खरीद लिया। मछली व्यापारी यह भी बतातेे हैं कि स्थानीय पुलिस वालों को वे समय-समय पर मछलियां परोसतेे हैैं, इसकेे लिए उन पर कार्रवाई नहीं होती। अवैध मछली कारोबारी सीना तानकर कहते हैं कि पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती और न ही विभाग के अधिकारी उनका कुछ बिगाड़ सकते हैं। इस दौरान वेे खुलेआम विभाग एवं पुलिस को गालियां भी बकते हैैं। वे कहते हैं कि सबको उनकी औकात केे अनुसार राशि पहुंचाई जाती है।
नहीं उठाते मत्स्य विभाग के अधिकारी फोन-
अवैध मछली के इस कारोबार कोे लेकर चर्चा करनेे के लिए मत्स्य विभाग के प्रभारी उप संचालक प्रियंक श्रीवास्तव को कई बार उनके मोबाइल नंबर पर फोन लगाया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
इनका कहना है-
प्रजनन काल में मछली पकड़ने का मामला संज्ञान मेें आया है। इसकोे टीएल में लिया गया हैै और जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
– प्रवीण सिंह अढायच, कलेक्टर, जिला सीहोर

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