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गुरू के माध्यम से ईश्वर को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है: वैभव भटेले

प्रभु प्रेमी संघ ने मानस भवन में मनाया गुरू पूर्णिमा महोत्सव

आष्टा। भारत को ज्ञान के द्वारा ही विश्व विजेता बनाया जा सकता है। आर्थिक विकास से हम विकसित देश की श्रेणी में जरूर पहचाने जा सकते हैं, परंतु हमारी धरोहर तो हमारा प्राचीन ज्ञान ही हैं, जिसे समूचे विश्व में अनूठे एवं अतिप्राचीन ज्ञान के रूप में पहचाना जाता है। हमारी प्राचीन सनातनी संस्कृति एवं अद्भुत ज्ञान उन्हीं गुरूओं की देन है, जो आज तक संपूर्ण विश्व में एक अनूठी संस्कृति के रूप में पहचाना जाता है। उक्त आशय के उद्गार स्थानीय मानस भवन में परम पूज्य आचार्य महामंडेलश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरी महाराज द्वारा संस्थापित प्रभु प्रेमी संघ द्वारा गुरूपूर्णिमा पर आयोजित गुरूपूर्णिमा महोत्सव में प्रसिद्व कथाकार, विचारक एवं स्वतंत्र पत्रकार वैभव भटैले ने व्यक्त किए। उन्होंने गुरू शब्द को विस्तारपूर्वक समझाते हुए कहा कि गुरू ही ईश्वर को प्राप्त कराने वाला एक सुलभ साधन है, परंतु केवल शर्त यही है कि हमारे मन में भटकाव नहीं आने पाए। आज हम देखते हैं साधक आए दिन गुरू बदल लेते हैं। सच्चा साधक वही है जो अपने गुरू के प्रति समर्पित रहे तथा उनके विचारों का प्रचार-प्रसार करे। गुरू के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं धैर्यपूर्वक भक्ति ही हमें गुरू के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचा सकती है। गुरू तत्व को स्थिर बनाए रखना आज के समय की चुनौती है। इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जलवित कर किया गया। प्रभु प्रेमी संघ के संयोजक कैलाश परमार, अध्यक्ष सुरेश पालीवाल, प्रेमनारायण गोस्वामी, मोहन सिंह अजनोदिया, पंडित भवानीशंकर शर्मा, प्रेमनारायण शर्मा, प्रदीप प्रगति, शैलेष राठौर, नरेंद्र कुशवाह आदि ने दीप प्रज्जलवित किया। क्षेत्र के प्रसिद्व भजन गायक एवं साहित्यकार श्रीराम श्रीवादी अनुरोध ने उनकी संगीतज्ञ टीम शिव श्रीवादी, दीपेश गौतम के साथ प्रभु एवं गुरू भक्ति की समधुर प्रस्तुति दी। नगर के अन्य भजन गायक संत जीवनराज, अजय भैया, नर्वदाप्रसाद मालवीय, सुमित चौरसिया, कु. हेमा बैरागी ने भी गुरू भक्ति के भजनों की प्रस्तुति दी। गुरूपूर्णिमा कार्यक्रम का विधिवत् शुभारंभ सभी प्रभु प्रेमी भक्तों ने स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज की चरण पादुका की विधि विधान से पूजा अर्चना की। कार्यक्रम का सफल संचालन गोविंद शर्मा ने किया। कार्यक्रम में नगर के गणमान्य नागरिक, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधिगण, पत्रकार गण एवम प्रभुप्रेमीजन सहित महिलाए भी मौजूद थी।
गुरु तेरे चरणों में शत शत नमन-
इधर श्री ब्रह्मानंद जन सेवा संघ, मां कृष्णा धाम आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्री गुरु पूर्णिमा अमृत महोत्सव के विराम दिवस पर हजारों गुरु भक्तों ने अपने गुरु की पूजा-अर्चना की। इस दौरान कई भक्तों ने गुरु दीक्षा ली। इस अवसर पर मां कृष्णा जी ने गुरू की महिमा बताते हुए कहा कि जब गुरु अपने शिष्य को गुरु दीक्षा देते हैं तो उसके अभी तक के सारे पाप हर लेते हैं और वह एक निर्मल व्यक्तित्व के रूप में निखरता है। गुरु से दीक्षा लेने के बाद उस व्यक्ति के सारे कार्य गुरु के द्वारा संपादित होते हैं। वह जो भी कार्य होता है करता है वह सब सफल होते हैं, लेकिन इन सबके लिए शिष्य की अपने गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा को वेदव्यास जी के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। आज के दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करता है। गुरु स्वयं में पूर्ण है, तभी तो वह हमें पूर्णत्व की प्राप्ति करवाता है। इस दिन शिष्य को अपनी समस्त श्रद्धा गुरु के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दान देना, तीर्थ करना, सेवा करना, पूजा-पाठ आदि करना, धर्म है, लेकिन वास्तविक धर्म तो है। जब हम परमात्मा को पाने के रास्ते पर चल पड़ते हैं। व्यक्ति के पास जो है वह उसकी कीमत नहीं करता जो उसके पास नहीं है उसी को वह पूर्ण मानता है। हमेशा याद रखें जो मिला है उसी में संतोष करें। जो नहीं है उसके पीछे अपने पास के सुख को नहीं गवाना चाहिए। आवश्यकता कभी किसी की अधूरी नहीं रहती और इच्छाएं कभी किसी कि पूरी नहीं होती। उन्होंने कहा कि रावण के जीवन में सब कुछ था, लेकिन गुरु नहीं था। इसलिए उसका विनाश हुआ। सीता स्वयंवर के समय जितने भी अन्य राजा थे उनके गुरु नहीं थे, किंतु राम के गुरु थे और इसलिए उनके द्वारा धनुष को तोड़ा गया एवं माता सीता जो भक्ति के रूप थी वह उनको मिली। जीवन में गुरु होना जरूरी है यदि जीवन में गुरु नहीं तो जीवन शुरू नहीं।

 

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