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पिता का कर्ज चुकाने नर्मदा में मछली पकड़ती थी, अब इंडियन नेवी में अफसर बनी कावेरी

सीहोर। कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो… इस कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है सीहोर जिले की भैरूंदा तहसील के गांव मंडी निवासी कावेरी ढीमर ने, जो कभी अपने पिता का कर्ज चुकाने के लिए नर्मदा में मछली पकड़ती थी, लेकिन अब इंडियन नेवी में अफसर हो गई है। मंडी की बेटी कावेरी ढीमर एक ऐसी सफल बेटी है, जिसने कठिन परिस्थितियों में हार नहीं मानी और खेल के क्षेत्र में न केवल अपना, बल्कि प्रदेश और देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। कावेरी ने अपनी मेहनत और कठिन संघर्ष से अपना नाम खेल के क्षेत्र में सुनहरे अक्षरों में अंकित करा दिया है। बेटी कावेरी ने कैनोइंग गेम्स में नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर 50 से ज्यादा मेडल जीते और देश का नाम रोशन किया। कावेरी ने एशियन चैम्पियनशिप में 1 ब्रांज मेडल जीता है, इसके साथ ही नेशनल चैम्पियनशिप में 45 गोल्ड, 6 सिल्वर और 3 ब्रांज मेडल अपने नाम किए हैं। मध्यप्रदेश की बेटी कावेरी जो कभी अपने पिता का कर्ज चुकाने के लिए नर्मदा में मछली पकड़ा करती थी, इसी कठिन संघर्ष के साथ उस बेटी ने इंडियन नेवी तक का सफर तय कर लिया है। वर्तमान में कावेरी इंडियन नेवी में एजीपीओ (पीटी) ऑफिसर के पद पर कार्य कर देश की सेवा कर रही है।
11 सदस्यों का परिवार है कावेरी का-
कावेरी के परिवार में 11 सदस्य हैं, जिसमें माता-पिता सहित 7 बहनें एवं 2 भाई शामिल हैं। कावेरी के पिता नर्मदा में मछली पकड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। कमजोर आर्थिक स्थिति और आमदनी कम होने के कारण जब परिवार का गुजारा चलाना कठिन हुआ तो पिता ने कर्ज ले लिया। इस कर्ज को चुकाने में बेटी कावेरी अपने पिता का सहारा बनी। पानी में नाव चलाते हुए बेटी कावेरी को जब एक स्पोर्ट्स ऑफिसर ने देख तो उन्होंने कावेरी को कैनोइंग गेम्स में ट्रेनिंग के लिए प्रेरित किया। स्पोर्ट्स ऑफिसर ने कावेरी को कैनोइंग गेम्स में ट्रेनिंग के लिए वाटर स्पोर्ट अकादमी भोपाल पहुंचा दिया। इसके पश्चात बेटी कावेरी ने अपने इस हुनर को अपना जुनून बना लिया। कावेरी ने एक के बाद एक कैनोइंग गेम में नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर 50 से ज्यादा मैडल जीते और देश का नाम रोशन किया। कावेरी ने एशियन चैम्पियनशिप में 1 ब्रांज मेडल जीता और नेशनल चैम्पियनशिप में 45 गोल्ड, 06 सिल्वर और 03 ब्रांज मेडल अपने नाम किए। इस उपलब्धि के लिए उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कावेरी को 11 लाख रूपए का इनाम भी दिया था। कावेरी का पिछले साल स्पोर्ट्स कोटे में इंडियन नेवी में सिलेक्शन हो गया। नेवी में सिलक्ट होने के बाद जब कावेरी अपने गांव पहुंची तो परिवार एवं ग्रामवासियों ने अपनी इस बेटी का धूमधाम से स्वागत किया।
संघर्षों से हुआ सामना, लेकिन हिम्मत नहीं हारी-
नाव से इंडियन नेवी तक के इस सफर में बेटी कावेरी को कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। इतने संघर्षों एवं विपरीत परिस्थियों के बाद भी बेटी कावेरी की हिम्मत नहीं टूटी, बल्कि वह अपने बुलंद हौंसलों के साथ आगे बढ़ती रही। इसी बुलंद हौंसले और मेहनत का नतीजा यह रहा कि जो बेटी कावेरी कभी पिता के कर्ज के 40 हजार रूपए चुकाने के लिए नाव चलाकर मछलियां पकड़ती थी, वो अब भारतीय जल सेना में आफिसर बनकर देश की सेवा कर रही है। अपनी बेटी की इस सफलता को लेकर कावेरी के माता-पिता बहुत खुश हैं। कावेरी के पिता कहते हैं कि बेटी कावेरी ने जिस संघर्ष के साथ यह सफलता पाई है, यह हमने सपने में भी नहीं सोचा था, वास्तव में बेटी हो तो कावेरी जैसी। वास्तव में संघर्षों का सामना कर बेटी कावेरी ने जो सफलता पाई है, वह हर बेटी और हर परिवार के लिए एक मिसाल है। बेटी कावेरी के जीवन की कहानी सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण का जीता-जागता उदाहरण है। आर्थिक तंगी, सामाजिक चुनौतियां और सीमित संसाधनों के बावजूद कावेरी ने हार नहीं मानी। कावेरी की सफलता यह दर्शाती है कि जहां हिम्मत होती है वहां रास्ते खुद बन जाते हैं, बेटियां कमजोर नहीं होतीं बस उन्हें मौका चाहिए। बेटी कावेरी की सफलता इस बात का जीता जागता उदाहरण है।

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