सीहोर। अपने बच्चों को संस्कार जरूर सिखाएं। वरना माता-पिता और बच्चे हमेशा दुखी रहेंगे। हमें अपने बच्चों को शिक्षा के साथ भक्ति जैसे संस्कारों का रोपण करना जरूरी है। बच्चे के अंदर संस्कार दो, कार नहीं, संस्कार होंगे तो कारों की लाइन लग जाएगी। ये बातें जिला मुख्यालय के समीपस्थ कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी सात दिवसीय रुद्राक्ष महोत्सव 2024 के पांचवे दिन शिव महापुराण में आए लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथा वाचक पंडिप प्रदीप मिश्रा ने कही। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि बच्चों को हर हाल में संस्कारित बनाइए। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को विठलेश सेवा समिति के द्वारा पानी की बोतल प्रदान की जा रही है। समिति द्वारा अब तक तीस लाख से अधिक पानी की बोतल वितरण की जा चुकी है। इसके अलावा यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर में लगी आधुनिक रसोई घर से सेवादारों के द्वारा भोजन प्रसादी का वितरण किया जा रहा है।
सोमवार को कथा के दौरान पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया एक लौटा जल और एक बेलपत्र सारे दुखों का नाश करता है। बेलपत्र में योग और शिव शक्ति है। जो सच्चे मन से शिव का स्मरण करता है उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं। माता-पिता, संत, गुरुजन और भगवान के भक्त की पहचान उसके जीते जी नहीं होती उसके जाने के बाद पता चलता है कि जीवन में उनका क्या महत्व था। संत और बसंत एक जैसे हैं। संत के जीवन में आने से जीवन बदलता है तो बसंत के आने से प्रकृति बदलती हैं। जो समय भक्ति में दिया जाता है वह कभी व्यर्थ नहीं जाता, उसका लाभ जरूर मिलता है।
शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंद-
पंडित प्रदीप मिश्रा ने भगवान शिव के चक्रों की चर्चा करते हुए कहा कि चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पडऩे पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला। इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है।
सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे धाम-
विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि कुबेरेश्वरधाम पर हर रोज लाखों की संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कथा का श्रवण करने पहुंच रहे हैं। कुछ श्रद्धालु तो ऐसे हैं जो पैदल चलकर धाम पर पहुंच रहे हैं। ऐसे ही एक दर्जन से अधिक मनावर धार से धाम पर करीब 325 किलोमीटर पैदल चलकर आए श्रद्धालुओं का कहना है कि यह उनकी तीसरी यात्रा है और वह झंडा लेकर हर साल पैदल धाम पर आते हैं। मनावर के रहने वाले नारायण राजपूत ने बताया कि पहली बार तो हम दो लोग ही कथा का श्रवण करने आए थे, इस बार एक दर्जन क्षेत्रवासी हमारे साथ है। बाबा ने हमारी झोली भर दी है। इन श्रद्धालुओं का श्री मिश्रा ने सम्मान किया।