बस एक कदम से शतरंज के बादशाह बनने से चूके प्रगनानंदा
फिडे वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में मैग्नस कार्लसन ने हराया
बाकू। भारत के युवा शतरंज खिलाड़ी रमेशबाबू प्रगनानंदा चेस के विश्व विजेता बनने से महज एक कदम से चूक गए। फिडे वर्ल्ड कप के फाइनल यानी खिताबी मुकाबले में उन्हें 5 बार के वर्ल्ड चैंपियन नार्वे के मैग्नस कार्लसन ने टाईब्रेकर में 1.5-0.5 से हराया। विश्वनाथन आनंद के बाद भारत को कोई विश्व चैंपियन नहीं मिल सका है। वर्तमान में मैग्नस कार्लसन विश्व रैंकिंग के शीर्ष स्थान हासिल किए हुए हैं, जबकि प्रगनानंदा विश्व के 29वें नंबर के खिलाडी हैं।
ऐसा रहा मुकाबला
टाईब्रेकर का पहला रैपिड गेम नॉर्वे के खिलाड़ी ने 47 चाल के बाद जीता था। दूसरा गेम ड्रॉ रहा और कार्लसन चैंपियन बन गए। इससे पहले दोनों ने क्लासिकल राउंड के दोनों गेम ड्रॉ खेले थे। प्रगनानंदा अगर यह मुकाबला जीत जाते तो 21 साल बाद कोई भारतीय यह टाइटल जीतता। इससे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2002 में इस चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। तब प्रगनानंदा पैदा भी नहीं हुए थे। इधर मैग्नस कार्लसन फिडे वर्ल्ड कप में पहली बार चैंपियन बने हैं। भारतीय दिग्गज विश्वनाथन आनंद और लेवोन एरोनियन ने 2-2 खिताब जीते हैं।
पिता बैंकर, मां हाउस वाइफ
प्रगनानंदा का जन्म 10 अगस्त, 2005 को चेन्नई में हुआ। उनके पिता स्टेट कॉर्पोरेशन बैंक में काम करते हैं, जबकि मां नागलक्ष्मी एक हाउसवाइफ हैं। बड़ी बहन वैशाली आर भी शतरंज खेलती हैं। प्रगनानंदा का नाम पहली बार चर्चा में तब आया जब उन्होंने 7 साल की उम्र में वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीत ली। तब उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनल डेस एचेक्स (FIDE) मास्टर की उपाधि मिली।
सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर
वे 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन गए और सबसे कम उम्र में यह उपाधि हासिल करने वाले भारतीय बने। इस मामले में प्रगनानंदा ने भारत के दिग्गज शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का रिकॉर्ड तोड़ा। इससे पहले वे 2016 में यंगेस्ट इंटरनेशनल मास्टर बनने का खिताब भी अपने नाम कर चुके हैं। तब वे 10 साल के ही थे। चेस में ग्रैंडमास्टर सबसे ऊंची कैटेगरी वाले खिलाड़ियों को कहा जाता है। इससे नीचे की कैटेगरी इंटरनेशनल मास्टर की होती है।