रक्षाबंधन आज: पाताल लोक की भद्रा, इसलिए भ्रमित न होकर सुबह 11.45 से राखी का शुभ मुहूर्त

रक्षाबंधन आज: पाताल लोक की भद्रा, इसलिए भ्रमित न होकर सुबह 11.45 से राखी का शुभ मुहूर्त

सीहोर। भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का पर्व रक्षाबंधन आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त को लेकर कई भ्रमित करने वाली जानकारियां भी सोशल मीडिया सहित अन्य प्लेटफार्म पर डाली जा रही है, लेकिन आप इनसे भ्रमित न होे। दरअसल भद्रा में रक्षाबंधन सहित शुभ कार्य नहीं किए जातेे हैं यह सत्य हैै, लेकिन इस बार की भद्रा पाताल लोक की भद्रा है। इसका मुख पाताल लोक में है, इसलिए धरती लोक पर इसका असर नहीं हैै। राखी के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11.45 से शुरू है। अलग-अलग समय में मुहूर्त है और यह रात्रि 9 बजे तक हैं, इस बीच में आप कभी भी रक्षाबंधन बना सकते हैं।
12 अगस्त की भी अफवाह-
कई ज्योतिषी एवं पंडितोें द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि 12 अगस्त कोे रक्षाबंधन मनाएं, लेकिन 12 अगस्त को सुबह 7.30 बजे तक की पूर्णिमा है औैर रक्षाबंधन का त्यौहार पूर्णिमा पर ही मनाया जाता है, इसलिए यह भी अफवाह है। रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त कोे है औैर इसकेे लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11.37 से शुरू होकर अलग-अलग समय में रात्रि 9 बजे तक है।
रक्षाबंधन पर राखी बांधने के ये हैं शुभ मुहूर्त-
ज्योतिषाचार्य आचार्य पंडित बसंत शुक्ला ने बताया कि इस बार भद्रा पाताल लोक की है। राखी का शुभ मुहूर्त सुबह 11.45 से है। डॉ. पंडित गणेश शर्मा स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य की मानें तो रक्षाबंधन पर राखी बांधने के सुबह 11.37 से 12.29 तक अभिजीत मुहूर्त होगा। फिर दोपहर 2.14 मिनट से 03.07 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा।
भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी-
रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया था। भद्रा शनिदेव की बहन थी। भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्राप मिला था कि जो भी भद्रा में शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा।
रक्षाबंधन, वैदिक काल से अब तक-
भविष्य पुराण के मुताबिक, सबसे पहले इंद्र को उनकी पत्नी शचि ने रक्षा सूत्र बांधा था, जिससे इंद्र को युद्ध में जीत मिली। वामन पुराण में बताया है कि लक्ष्मी जी ने भी राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। इसके बाद वैदिक काल में निरोगी रहने, बुरी ताकतों और दुर्भाग्य से बचाने और लंबी उम्र की कामना से योग्य ब्राह्मण श्रवण नक्षत्र में लोगों को रक्षा सूत्र बांधते थे। बाद में ये ही सूत्र राखी में बदल गया और भाई-बहन का त्योहार बन गया।